वो शायद जुलाई की शाम थी या अगस्त की…याद नहीं. हम यूँ ही बातें करने की जगह ढूँढते-ढूँढते सरस्वती घाट पहुँच गए थे. वो जगह खूबसूरत है और हमारी मजबूरी भी क्योंकि इलाहाबाद में घूमने-फिरने के लिए इनी-गिनी जगहों में से एक है.
उन दिनों मैं जबरदस्त इमोशनल और फाइनेंसियल क्राइसिस से गुजर रही थी और उसका अपनी दूसरी गर्लफ्रैंड से ताजा-ताजा ब्रेकअप हुआ था. अरे नहीं… ये मैं क्या कह गयी ? वो अपनी ‘बिलवेड’ को ‘गर्लफ्रैंड’ और ‘प्रेम-सम्बन्ध’ को ‘अफेयर’ कहे जाने से बहुत चिढ़ता है. हाँ, तो उसका दूसरा प्रेम-सम्बन्ध टूट गया था. इसलिए उसके पास ढेर सारा समय था मेरी काउंसलिंग करने का. या यूँ कहें कि उसे बैठे-बिठाए अपने मनपसंद विषय मनोविज्ञान का प्रयोग करने के लिए एक ‘सब्जेक्ट’ मिल गया था. इसीलिये हम दोनों अक्सर मिलते थे और घंटों बातें करते थे.
उस दिन हम रिक्शे से गए थे. बाइक उसके पास थी नहीं. कभी-कभार हॉस्टल के दोस्तों से माँग लेता था. उस दिन मौसम बहुत गर्म था. उमस भरी चिपचिपी गर्मी… कि अचानक बादल घिरे और झमाझम बारिश होने लगी. हमें पार्क से भागकर शेड की शरण लेनी पड़ी. जो लोग बाइक या कार से आये थे, वो लोग तो निकल गए और हम जैसे कुछ लोग फँस गए. पर वो फँसना बड़ा ही हसीन था. कुछ देर पहले कोल्ड ड्रिंक पीने का मौसम था और अब अदरक वाली चाय की तलब लगी. बारिश, दोस्त का साथ और अदरक की चाय … इससे सुन्दर क्या हो सकता है भला ?
थोड़ी देर बाद सरस्वती घाट पर नियमित होने वाली आरती शुरू हो गयी. अद्भुत दृश्य था. आरती का प्रकाश शेड से गिरती मोटी-मोटी बूँदों को मोती की लड़ियों में बदल रहा था. सामने जमुना के पानी पर धुँआ-धुँआ सा फैला था और उस पार घुप अँधेरा. हम दोनों बातें बंद करके सिर्फ बारिश देखे जा रहे थे. अचानक एक ख्याल ने मेरी रूमानियत में खलल डाल दिया… हॉस्टल कैसे जायेंगे? “बारिश बंद नहीं होगी क्या?” मैंने परेशान होकर कहा. “मुझे नहीं मालूम” उसकी नज़रें अब भी बारिश पर थीं जैसे फेविकोल से चिपका दिया गया हो, बिना मेरी ओर देखे बोला, “तुम ज़रा भी रोमैंटिक नहीं हो, जो चाहती हो कि बारिश बंद हो जाये” “हाँ, मैं नहीं हूँ. हॉस्टल गेट नौ बजे बंद हो जाएगा. चलो उठो रिक्शा ढूँढें”
किसी-किसी तरह एक रिक्शा मिला… मैं हमेशा की तरह अपने में सिमटकर बैठ गयी… लड़कियों को पवित्रता का पाठ इतना घोंट-घोंटकर पिलाया जाता है कि अपने सबसे प्यारे दोस्त को भी छूने से डर लगता है. और जब किसी और के प्रति कमिटमेंट हो, तब तो ये पाप लगता है. वो कॉन्वेंट में पढ़ा लड़का मेरी इस हरकत का मजाक बनाता रहता था, पर उस दिन उसने कहा,”डरती हो न?” “किससे?” “अपने आप से” उसको अपनी इस शरारत भरी बात के लिए मेरी बडी नाराजगी झेलनी पड़ी. वो अब भी कभी-कभी ऐसी बातें करके मुझसे डाँट खाता रहता है. पर आज उससे ये कहने का मन हो रहा है, “सुनो, मुझे तुम्हारी शरारत भरी ये बातें अच्छी लगती हैं”
फिर से वही उमंग ऊर्जा और उछाह -अच्छा लगा ! अब आप स्वस्थ है -यह सत्यापित हुआ !
मन के हारे हार है मन के जीते जीत …….वैसे वह दोस्त अब कहाँ हैं -आप बताएगी तो नहीं !
ठीक ही करेगीं ….वर्ना ईर्ष्या क्या न करा दे ….
लड़कियों को पवित्रता का पाठ इतना घोंट-घोंटकर पिलाया जाता है कि अपने सबसे प्यारे दोस्त को भी छूने से डर लगता है. और जब किसी और के प्रति कमिटमेंट हो, तब तो ये पाप लगता है….
बात तो सही है …
इस समय जब पोस्ट पढ़ रहा हूँ तब सामने जूम पर दिल तो बच्चा है गाना चल रहा है और क्या सटीक टाइमिंग पर कह रहा है –
कारी बदरी जवानी की छंटती नहीं……
…..
…..
किसको पता था पहलू में रक्खा
दिल ऐसा पाजी भी होगा
…..
…..
हाय जोर करे, कितना शोर करे
बेवजह बातों पे गौर करे
और इसकी कुछ लाईनें तो एकदम आपकी पोस्ट पर सटीक बैठ रही हैं…..कारी बदरी…..बूंदे….मोतीयों पर आँखे….इन बूंदो….बारिशों पर बेवजह गौर करना उधर हॉ्टल का गेट………..दिल तो बच्चा है जी 🙂
लड़कियों को पवित्रता का पाठ इतना घोंट-घोंटकर पिलाया जाता है कि अपने सबसे प्यारे दोस्त को भी छूने से डर लगता है. और जब किसी और के प्रति कमिटमेंट हो, तब तो ये पाप लगता है….
Yahi jaise kafi nahin hai us pe Hostel warden, watchman se lekar har kaamgaar ko in loco parentis bitha diya, gate bandh hone ka to ek bahana bana liya in thekedaron ne.
Dost aur dosti hai hi nayab cheez sambhal ke rakho to bahut door taq saath dete hein…
नदी तट पर बरसात की रुमानियत और प्यारे दोस्त का साथ … अद्भुद!!!
“दोस्त”….. इस से असीम रिश्ता मुझे तो नहीं मिला अभी तक …
आपका लेखन आपकी परिपक्वता का परिचायक है … मोहक प्रस्तुति ..
बहुत अच्छी लगी आपकी पोस्ट क्योंकि आपने मेरे सबसे प्रिय विषय पर लिखा हैं .
मुझे पता नहीं कि आपने ये कल्पना से लिखी हैं पर मेरे जीवन में ये सच में घटी थी कभी . और आज तक इस विषय पर कविता लिखता लिखता नहीं थका . आपने बिलकुल सही कहा कि लडकियों को स्पर्श से हमेशा नैतिक परहेज़ होती हैं चाहे वो आपका अच्छा दोस्त ही क्यों ना हो . पर मेरी दोस्त ने मुझे कभी अपमानित नहीं किया . आपने जैसे मेरे उस समय को जीवित कर दिया . कितनी बार कविता लिखते लिखते रोना आ जाता था एक तो आज ही लिखी , खैर व्यक्तिगत ज्यादा हो रहा हूँ भावुक कही का .
इतनी अच्छी प्रेम से भरी संवेदनातमक प्रस्तुति के लिए धन्यवाद . आपका
—
!! श्री हरि : !!
बापूजी की कृपा आप पर सदा बनी रहे
एक घूँट रूमानियत
निगलते बने न चखते
ज़्यादा से ज़्यादा देखते बने
या फिर
महसूसते
और
आज फिर उमस ज़्यादा है
हवा चुप है और लहरेँ ख़ामोश
बादल कहीँ नहीँ दिखते
तुम तो हो न!
…
अच्छी रचना के लिए बधाई
वो मेरा दोस्त है अली जी, अब भी और हमेशा रहेगा. दोस्त से ब्रेक अप नहीं होता. आपने शायद इस लाइन पर ध्यान नहीं दिया -…’और जब किसी और के प्रति कमिटमेंट हो.’
ek to allahabad bada dekha bhala hai mere liye ..doosre aap ki post ..jaise live telecast ho raha ho…aur han akhir ka wo misra…bahut achhi lagi ye post… “gunahon ka devta” ki shuruvati lines yaad aa gayeen ..” allahabad ka rachayita zaroor koi romantic kalakar raha hoga”
लड़कियों के साथ यही मुश्किल है उन्हें सामने की चीज़ दिखाई तो देती है पर और सौ चीज़ें साथ में.दिख जाती हैं….लड़कों सी निफिक्र वे नहीं हो सकतीं…और इसीलिए कई खुशनुमा लम्हे गँवा बैठती हैं…जैसे तुमने इस दृश्य “आरती का प्रकाश शेड से गिरती मोटी-मोटी बूँदों को मोती की लड़ियों में बदल रहा था. सामने जमुना के पानी पर धुँआ-धुँआ सा फैला था ” को देखा तो..पर हॉस्टल पहुँचने की चिंता ने उसे पूरी तरह आत्मसात नहीं करने दिया…और इस पर उस दोस्त ने डांटा तो….ठीक ही किया ना 🙂
फिर भी देखो वह दृश्य ज्यूँ का त्यूँ तुम्हारी आँखों के आगे ठहरा हुआ है….और उसकी बातों की अनुगूंज भी…ये भी बस लडकियां ही कर सकती हैं…:)
बहुत ही खूबसूरती से लिखा है…
” लड़कियों के साथ यही मुश्किल है उन्हें सामने की चीज़ दिखाई तो देती है पर और सौ चीज़ें साथ में.दिख जाती हैं….लड़कों सी निफिक्र वे नहीं हो सकतीं…और इसीलिए कई खुशनुमा लम्हे गँवा बैठती हैं…”
बहुत सही कहा आपने रश्मि जी. लड़कियां बस ऐसी ही होती हैं.
दिल से उठता है के जाँ से उठता है..
ये धुंआ सा कहाँ से उठता है…
दिल को जज्ब तो बहुत किया पर फिर ‘तुम्हारे’ इस संस्मरण पर टिप्पणी करने से रहा नहीं गया. वो एक तो यूँ कि इलाहाबाद की सडकों पे ठंडी सी आग लगाये बैठे वो अमलतास,वो दहकते गुलमोहर अचानक से आँखों में तिर से गए और ये कि ये अनजानी सी जगह अचानक और अनचीन्ही और अनजान सी हो के रह गयी. मन जैसे शरीर छोड़ के अचानक साइकोलोजी डिपार्टमेंट के सामने कि सड़क से छात्रसंघ भवन कि तरफ निकल सा गया और वापस पकडने कि कोशिश की तो बस रिक्शे पे बैठ के कॉफी हॉउस जाने की जिद सा करने लगा..
कुछ शहर बस शहर नहीं रह पाते कभी. हम उनमे नहीं वो हममें रहने से लगते हैं.. देखो तुमने तो शहर की याद दिला के सेंटी कर दिया.. अब देखो ना ये तुम्हारा शहर यादों में बारिश सा बरस रहा है..
चलिये प्रसन्नता हुयी यह पढ़कर कि आप दिल रखती हैं जो धड़कता भी है । विषयों की गहराई आत्मीयता के साथ बढ़ती है । आत्मीयता तब बढ़ती है जो किसी पर विश्वास होने लगे । औरों पर विश्वास तब ही आयेगा जब आप को स्वयं ज्ञात हो कि आप क्या चाहती हैं ?
उत्तर हृदय से आते हैं और हृदय के लिये क्या हांगकांग क्या पटियाला । लोग तो विवाह के बाद भी सदियों के फ़ासले में रहते हैं ।
तीसरी बार पढ़ने में फ़ायदा रहा, दोस्त से टिप्पणी के माध्यम से मुलाक़ात का, क्योंकि आज फिर से सारी टिप्पणियाँ पढ़ीं। मुझे टिप्पणियाँ पढ़ कर वाकई पोस्ट का पूरा मिज़ाज जीने में मज़ा आता है। 🙂
बहुत आत्मिक अभिव्यक्ति..पढ़कर अच्छा लगा.
बहुत खूब! क्या पता वह बालक इसको पढ़ रहा हो और तुम्हारी बात सुन रहा हो! प्यारी पोस्ट!
हे हे ! उस बालक ने पढ़ भी लिया और चैट में मुझसे बता भी दिया कि उसे कैसा लगा.
फिर से वही उमंग ऊर्जा और उछाह -अच्छा लगा ! अब आप स्वस्थ है -यह सत्यापित हुआ !
मन के हारे हार है मन के जीते जीत …….वैसे वह दोस्त अब कहाँ हैं -आप बताएगी तो नहीं !
ठीक ही करेगीं ….वर्ना ईर्ष्या क्या न करा दे ….
आप उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते. वो हांगकांग में है.
bahut khub
फिर से प्रशंसनीय
http://guftgun.blogspot.com/
padte-padte jaise film hi dekh li…..
bahut achchha…. imandari poorvarak likhe hai aapne vichar.
लड़कियों को पवित्रता का पाठ इतना घोंट-घोंटकर पिलाया जाता है कि अपने सबसे प्यारे दोस्त को भी छूने से डर लगता है. और जब किसी और के प्रति कमिटमेंट हो, तब तो ये पाप लगता है….
बात तो सही है …
अच्छा लगा यह संस्मरण …
सुनो, मुझे तुम्हारी शरारत भरी ये बातें अच्छी लगती हैं.
इस समय जब पोस्ट पढ़ रहा हूँ तब सामने जूम पर दिल तो बच्चा है गाना चल रहा है और क्या सटीक टाइमिंग पर कह रहा है –
कारी बदरी जवानी की छंटती नहीं……
…..
…..
किसको पता था पहलू में रक्खा
दिल ऐसा पाजी भी होगा
…..
…..
हाय जोर करे, कितना शोर करे
बेवजह बातों पे गौर करे
और इसकी कुछ लाईनें तो एकदम आपकी पोस्ट पर सटीक बैठ रही हैं…..कारी बदरी…..बूंदे….मोतीयों पर आँखे….इन बूंदो….बारिशों पर बेवजह गौर करना उधर हॉ्टल का गेट………..दिल तो बच्चा है जी 🙂
मस्त पोस्ट है।
^^हॉ्स्टल का गेट पढ़े
अच्छी पोस्ट, अचछी अभिव्यक्ति।
1”डरती हो न?” “किससे?” “अपने आप से”
2 आप उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते. वो हांगकांग में है.
पढ़कर अच्छा लगा अपना सा. या यह कह सकते हैं कि अपने से किस्से अच्छे लगते हैं.
काफ़ी अच्छा
Refreshing come back.
लड़कियों को पवित्रता का पाठ इतना घोंट-घोंटकर पिलाया जाता है कि अपने सबसे प्यारे दोस्त को भी छूने से डर लगता है. और जब किसी और के प्रति कमिटमेंट हो, तब तो ये पाप लगता है….
Yahi jaise kafi nahin hai us pe Hostel warden, watchman se lekar har kaamgaar ko in loco parentis bitha diya, gate bandh hone ka to ek bahana bana liya in thekedaron ne.
Dost aur dosti hai hi nayab cheez sambhal ke rakho to bahut door taq saath dete hein…
Peace
Desi Girl
wawo………….dil ki bat hai ye to….
नदी तट पर बरसात की रुमानियत और प्यारे दोस्त का साथ … अद्भुद!!!
“दोस्त”….. इस से असीम रिश्ता मुझे तो नहीं मिला अभी तक …
आपका लेखन आपकी परिपक्वता का परिचायक है … मोहक प्रस्तुति ..
अब आपकी बेबाकी कायल करने लगी है….
प्रिय आराधना जी ,
बहुत अच्छी लगी आपकी पोस्ट क्योंकि आपने मेरे सबसे प्रिय विषय पर लिखा हैं .
मुझे पता नहीं कि आपने ये कल्पना से लिखी हैं पर मेरे जीवन में ये सच में घटी थी कभी . और आज तक इस विषय पर कविता लिखता लिखता नहीं थका . आपने बिलकुल सही कहा कि लडकियों को स्पर्श से हमेशा नैतिक परहेज़ होती हैं चाहे वो आपका अच्छा दोस्त ही क्यों ना हो . पर मेरी दोस्त ने मुझे कभी अपमानित नहीं किया . आपने जैसे मेरे उस समय को जीवित कर दिया . कितनी बार कविता लिखते लिखते रोना आ जाता था एक तो आज ही लिखी , खैर व्यक्तिगत ज्यादा हो रहा हूँ भावुक कही का .
इतनी अच्छी प्रेम से भरी संवेदनातमक प्रस्तुति के लिए धन्यवाद . आपका
—
!! श्री हरि : !!
बापूजी की कृपा आप पर सदा बनी रहे
Email:virender.zte@gmail.com
Blog:saralkumar.blogspot.com
एक घूँट रूमानियत
निगलते बने न चखते
ज़्यादा से ज़्यादा देखते बने
या फिर
महसूसते
और
आज फिर उमस ज़्यादा है
हवा चुप है और लहरेँ ख़ामोश
बादल कहीँ नहीँ दिखते
तुम तो हो न!
…
अच्छी रचना के लिए बधाई
बहुत आत्मिक अभिव्यक्ति..पढ़कर अच्छा लगा
दिलचस्प!!!!!
आमद सुखद है !
ओह बेहद रोमंटिक !
क्या उस हांगकांग वाले का यह तीसरा ब्रेकअप हुआ ? : )
वो मेरा दोस्त है अली जी, अब भी और हमेशा रहेगा. दोस्त से ब्रेक अप नहीं होता. आपने शायद इस लाइन पर ध्यान नहीं दिया -…’और जब किसी और के प्रति कमिटमेंट हो.’
तुम्हे वापस देखकर बहुत अच्छा लगा… 🙂
ऎसे दोस्त ही तो एक इमोशनल अटैचमेन्ट देते है.. और इस इमोशनल अटैचमेन्ट की जरूरत हमे ताउम्र रहती है… ताउम्र
बहुत अपनत्त्व से लिखा है ये संस्मरण….सुन्दर प्रस्तुति
अरे…..अरे….अरे….ये बात तो मुझे भी अच्छी लगी…..सच…..!!!
great comeback
बहुत दिन बाद सही दिखीं आप.. काफी अच्छा लगा शिल्प इस प्रसंग का.. चलता हूँ.. अदरक वाली चाय बनाई जाये..
ज़ज्बे को सलाम , अनंत शुभकामनायें , आशीष !
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति के साथ…. सुंदर रचना….
आपके ‘संस्मरण’ का अंदाज वाह क्या कहने
समयांतराल के बाद स्वीकार शायद सहज हो जाता है.
सुहानी बरखा की फुहार जैसी पोस्ट पढ़ कर अच्छा लगा… दोस्त होते ही ऐसे हैं… मीठी यादों के सोते जैसे…
यह वक्त से चुराए हुए लम्हे होते हैं ..मेरा मानना है इन्हें जीने में कोई कोताही नही बरतनी चाहिए 🙂
ek to allahabad bada dekha bhala hai mere liye ..doosre aap ki post ..jaise live telecast ho raha ho…aur han akhir ka wo misra…bahut achhi lagi ye post… “gunahon ka devta” ki shuruvati lines yaad aa gayeen ..” allahabad ka rachayita zaroor koi romantic kalakar raha hoga”
बेहद आत्मिक ओर प्यारी अभिव्यक्ति ..तुम्हें वापस देख कर बहुत अच्छा लगा मुक्ति !
अरे तो आर्डर देना था ना
बगल मे ही तो स्नेहा कैफे है गरमा गरम अदरक वाली स्पेशल चाय पिलाता 🙂
जमुना को यमुना कर दीजिए बड़ा अटपटा लग रहा है
रिक्शा वाले भी उस एरिया मे खूब लूटते हैं खास कर शाम को बारिश हो जाए तो
पोस्ट पढ़ कर एक साथ बहुत सारे भाव आ कर चले गये, और अंत मे होंठ पर मुस्कान छोड़ गये 🙂
So Sweet and romantic. Very beautiful post.
Cheers,
Richa
wah…सोहणा संस्मरण……. वाहेगुरू जी दा खालसा वाहेगुरू जी दी फतेह…..
…बहुत सुन्दर !!!
’और जब किसी और के प्रति कमिटमेंट हो.’—–और ये कमिटमेन्ट क्या होता है जी.
लड़कियों के साथ यही मुश्किल है उन्हें सामने की चीज़ दिखाई तो देती है पर और सौ चीज़ें साथ में.दिख जाती हैं….लड़कों सी निफिक्र वे नहीं हो सकतीं…और इसीलिए कई खुशनुमा लम्हे गँवा बैठती हैं…जैसे तुमने इस दृश्य “आरती का प्रकाश शेड से गिरती मोटी-मोटी बूँदों को मोती की लड़ियों में बदल रहा था. सामने जमुना के पानी पर धुँआ-धुँआ सा फैला था ” को देखा तो..पर हॉस्टल पहुँचने की चिंता ने उसे पूरी तरह आत्मसात नहीं करने दिया…और इस पर उस दोस्त ने डांटा तो….ठीक ही किया ना 🙂
फिर भी देखो वह दृश्य ज्यूँ का त्यूँ तुम्हारी आँखों के आगे ठहरा हुआ है….और उसकी बातों की अनुगूंज भी…ये भी बस लडकियां ही कर सकती हैं…:)
बहुत ही खूबसूरती से लिखा है…
” लड़कियों के साथ यही मुश्किल है उन्हें सामने की चीज़ दिखाई तो देती है पर और सौ चीज़ें साथ में.दिख जाती हैं….लड़कों सी निफिक्र वे नहीं हो सकतीं…और इसीलिए कई खुशनुमा लम्हे गँवा बैठती हैं…”
बहुत सही कहा आपने रश्मि जी. लड़कियां बस ऐसी ही होती हैं.
मोबाइल पर ईमेल में पढ़ा था, और टिप्पणी भी की थी। आज दोबारा पढ़ने आया तो लगा कि तारीफ़ भी दोबारा कर दी जाय।
दिल से उठता है के जाँ से उठता है..
ये धुंआ सा कहाँ से उठता है…
दिल को जज्ब तो बहुत किया पर फिर ‘तुम्हारे’ इस संस्मरण पर टिप्पणी करने से रहा नहीं गया. वो एक तो यूँ कि इलाहाबाद की सडकों पे ठंडी सी आग लगाये बैठे वो अमलतास,वो दहकते गुलमोहर अचानक से आँखों में तिर से गए और ये कि ये अनजानी सी जगह अचानक और अनचीन्ही और अनजान सी हो के रह गयी. मन जैसे शरीर छोड़ के अचानक साइकोलोजी डिपार्टमेंट के सामने कि सड़क से छात्रसंघ भवन कि तरफ निकल सा गया और वापस पकडने कि कोशिश की तो बस रिक्शे पे बैठ के कॉफी हॉउस जाने की जिद सा करने लगा..
कुछ शहर बस शहर नहीं रह पाते कभी. हम उनमे नहीं वो हममें रहने से लगते हैं.. देखो तुमने तो शहर की याद दिला के सेंटी कर दिया.. अब देखो ना ये तुम्हारा शहर यादों में बारिश सा बरस रहा है..
अपने उस प्यारे से दोस्त को हमारा भी सलाम कहना..
Very nice.mam….
अच्छी पोस्ट, अचछी अभिव्यक्ति।
छूता हुआ संस्मरण ! जीवन को रस-संपृक्त करने वाली घटनाएं !
आभार ।
चलिये प्रसन्नता हुयी यह पढ़कर कि आप दिल रखती हैं जो धड़कता भी है । विषयों की गहराई आत्मीयता के साथ बढ़ती है । आत्मीयता तब बढ़ती है जो किसी पर विश्वास होने लगे । औरों पर विश्वास तब ही आयेगा जब आप को स्वयं ज्ञात हो कि आप क्या चाहती हैं ?
उत्तर हृदय से आते हैं और हृदय के लिये क्या हांगकांग क्या पटियाला । लोग तो विवाह के बाद भी सदियों के फ़ासले में रहते हैं ।
तीसरी बार पढ़ने में फ़ायदा रहा, दोस्त से टिप्पणी के माध्यम से मुलाक़ात का, क्योंकि आज फिर से सारी टिप्पणियाँ पढ़ीं। मुझे टिप्पणियाँ पढ़ कर वाकई पोस्ट का पूरा मिज़ाज जीने में मज़ा आता है। 🙂
आत्मीय और रस-सिक्त पोस्ट ! पढ़ने आता रहा ! इतने भावों के
बाद शब्द कहाँ ! सो इसे टीप की हाजिरी ही समझिये ! आभार !
बहुत प्यारी पोस्ट और दिल को मासूमियत से स्पर्श कर गयी….अपने बीते पुराने दिन याद करा गयी
आराधना जी,
सबसे पहले तो ये की ‘बिलवेड’ को ‘गर्लफ्रैंड’ और ‘प्रेम-सम्बन्ध’ को ‘अफेयर’ कहे जाने से हम भी बहुत चिढ़ते हैं 🙂
और बाकी तो पढ़ने में मजा आया 🙂
एक समय था, हमें बारिश से अजीब प्यार था, अब भी है..पर..:)
बुकमार्क किये जा रहे हैं आपके ब्लॉग को 🙂
वो अपनी ‘बिलवेड’ को ‘गर्लफ्रैंड’ और ‘प्रेम-सम्बन्ध’ को ‘अफेयर’ कहे जाने से बहुत चिढ़ता है
इस पंक्ति के अनेक अर्थ है । अच्छी रचना ।
फिर आ कर तसल्ली से पढूंगी ..:)