कोई हमको भी तो देखे, कोई हमसे भी तो पूछे
कुछ दिनों से लिख नहीं पा रही हूँ हालांकि शेयर करने के लिए बहुत कुछ है. कई सपनें, कुछ सवाल, कुछ समस्याएँ, कुछ समाधान. जाने कैसा दिमाग है कि किसी विशेष आयोजन के समय या विशेष दिवस को नज़र उन पर जाती है, जो फ्रेम से बाहर हैं. आज बालदिवस है तो सोचा कि कुछ ऐसा देखा-दिखाया जाए…
- वो जो सामने आने से डरते हैं
- जिनकी आँखों में हैं सैकड़ों सवाल
- और सीने में दहशत
- जिनके पास तन ढांकने को कपड़े नहीं
- और सपने हैं हज़ार
- चेहरे पर मासूमियत चमकती हुयी
- और जिम्मेदारियों का बोझ
- वो भी जीते हैं बचपन को बचपन की तरह …
- चल पड़े हैं उम्मीदों के सहारे
- उनके सपने पूरे होंगे
बाल दिवस पर उन्हें हमारी शुभकामनाएँ !
(नोट : सारे चित्र मेरी सहेली चैंडी के कैमरे से… दहशत वाला छाया चित्र उस दलित परिवार के बच्चे का है, जिसके घर को सवर्णों द्वारा जला दिया गया था और उसके बाद वह बच्चा थोड़ी सी भी हलचल से डर जाता है.)