दीवाने लोग पड़ ही जाते हैं अक्सर किसी न किसी के प्यार में
अफ़सोस ये कि जिससे प्यार है, उसे पता ही नहीं,
जाने क्या मिलता है और जाने क्या खो जाता है,
रात आती है, मगर नींद गुमशुदा है कहीं,
जागकर लिखते हैं कुछ-कुछ डायरी में दीवाने
दूसरे ही पल काटकर उसे, लिखते हैं फिर मिटाते हैं
बंद कर डायरी या फिर, लेट जाते हैं मुँह ढँककर
देखते हैं अँधेरे में कभी एकटक सामने की दीवार,
कट जाती है यूँ ही हर रात नींद के इंतज़ार में
दीवाने लोग जब भी पड़ जाते हैं किसी के प्यार में।
*** ***
काश कोई लौटा पाता वो पल, जब देखा था पहली बार तुम्हें
कि चीज़ें सभी उलट-पुलट हो गयीं है तभी से
रातें रतजगा कराने लगीं, दिनों पर पड़ गया मनों बोझ,
कुछ और आता नहीं दिमाग में तुम्हारे सिवा
मासूम छलिये,
ये तुमने क्या किया अनजाने में?
या कि जानबूझकर ?
नहीं तो नज़रें चुराकर देखते क्यों रहे बार-बार
और नज़र मिलने पर यूँ देखा दूसरी ओर, ज्यों कुछ हुआ ही नहीं,
तुम्हारी हर नज़र धंस गयी है सीने में काँटों की तरह
अब वहाँ अनगिनत काँटे हैं और असह्य चुभन
नहीं सोचा था उम्र के इस मोड़ पर भी हुआ करता है दीवानों सा प्यार
काश कोई लौटा पाता वो पल, जब देखा था तुम्हें पहली बार।
*** *** ***
जानती हूँ तुम्हारी कविताओं में मेरा ज़िक्र नहीं होता
जाने क्यों ढूँढती फिरती हूँ उन शब्दों में अपनी गुंजाइश,
मासूम छलिये, ये तुम अच्छा नहीं करते
कि प्यार से भरे शब्द यूँ उछाल देते हो अपने दीवानों में
ज्यों कोई शादी में उछाल देता है गरीबों में सिक्के,
गरीब टूट पड़ते हैं सिक्कों पर, दीवाने शब्दों पर
कि शब्द कीमती हैं उनके लिए सिक्कों की तरह,
वो ढूँढते हैं उनमें अपने होने का अर्थ-
कहीं कोई ज़िक्र, कोई हल्का सा इशारा कि तुमने याद किया
भूले से भी कौंधा तुम्हारे ज़ेहन में उनका नाम कभी,
दीवाने ढूँढते हैं और निकाल ही लेते हैं कोई अर्थ अपने मतलब का,
मासूम छलिये,
यूँ अपने दीवानों का तमाशा बनाना अच्छा है क्या?
A beautiful romantic poem!
उफ़्फ़्फ़..बेसाख्ता जैसे कोई झकझोर दे रहा हो ,दर्द के साथ शिकायत भी है ,कोई नही …होता है ..यही तो ज़िन्दगी है !
वो ढूँढते हैं उनमें अपने होने का अर्थ-
कहीं कोई ज़िक्र, कोई हल्का सा इशारा कि तुमने याद किया
भूले से भी कौंधा तुम्हारे ज़ेहन में उनका नाम कभी….
hmmm
🙂
बहुत सुंदर कृति ….
शुभकामनायें ….
यह किसकी ओर से है उसकी और से या तुम्हारे और से ? इन दिनों बहुत नृशंस जा रही हो 🙂 कम से कम दीवानों के जले पर नमक तो मत छिड़को 😦
आये हैं समझाने लोग, हैं कितने दीवाने लोग ! 🙂
दीवानगी जब उरूज़ पर हो…तो कुछ और कहां याद रहता है। आपने दीवानेपन को जो मुकाम बख्शा है…उसे पढ़कर दाग साहब की कुछ पंक्तियां बड़ी शिद्दत से याद आ रही हैं।
आरजू है कि निकले दम तुम्हारे सामने..
हम तुम्हारे सामने हों, तुम हमारे सामने..
क़त्ल कर डालो हमें या जुर्म ए उल्फ़त बख़्श दो..
लो खड़े हैं हाथ बांधे हम तुम्हारे सामने…।
😛 🙂
तुम्हें उन सब
बोसों की गहराई की कसम है
कि भुला देना सब कुछ।
शैतान की दीवानगी के सिवा।
***
प्रेम होने से पहले
आराम कुर्सी पर उचक कर बैठा हुआ शैतान
मुस्कुराकर कहता है तुम आओ तो सही।
प्रेम के बाद ढल जाता है शैतान, एक इंतज़ार से भरे आदमी में।
***
– Kishore Choudhary
https://www.facebook.com/authorkishore
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है ……
सादर , आपकी बहतरीन प्रस्तुती
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
पृथिवी (कौन सुनेगा मेरा दर्द ) ?
ये कैसी मोहब्बत है
यादें ताजा हो गईं..:)
आकर्षण का विज्ञान अभी तक अनसुलझा है, न जाने क्यों हर बार एक ही प्रयोग के निष्कर्ष अलग अलग आते हैं।
achchha rachna
behad khoobsurat