घर
(१.)
शाम ढलते ही
पंछी लौटते हैं अपने नीड़
लोग अपने घरों को,
बसों और ट्रेनों में बढ़ जाती है भीड़
पर वो क्या करें ?
जिनके घर
हर साल ही बसते-उजड़ते हैं,
यमुना की बाढ़ के साथ.
(२.)
चाह है एक छोटे से घर की
जिसकी दीवारें बहुत ऊँची न हो,
ताकि हवाएँ बेरोक-टोक
इधर से उधर आ-जा सकें.
*** *** ***
महानगर
(१.)
मन घबराता है,
समझ में नहीं आता कहाँ जायें ?
महानगर के आकाश में
चाँद भी साफ नहीं दिखता,
जिसे देखकर कोई
कविता लिखी जाये.
(२.)
छोटे शहरों में
छोटी-छोटी बातें भी
बड़ी हो जाती हैं
महानगरों में,
बड़ी बातों पर भी
ध्यान नहीं देता कोई.