मैंने जन्म लिया
इसी जगह
बार-बार
और मरती रही
तिल-तिलकर
कितनी ही बार
जीवन और मरण के बीच
पड़ी रही कोमा में
कभी महीनों
तो कभी सालों
फिर मरी
और फिर जन्म लिया
एक ही जन्म में
सैकड़ों जन्म बिता दिये मैंने
पर बस!
अब नहीं
मुझे इस रोज़-रोज़ के
जीने-मरने से
मुक्ति चाहिये
कहीं इसी मोक्ष की कामना
तो नहीं की थी
हमारे ऋषियों ने
सदियों पहले
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