लिखि लिखि पतियाँ

सुनो प्यार,

तुमने कहा था जाते-जाते कि शर्ट धुलवाकर और प्रेस करवाकर रख देना। अगली बार आऊंगा तो पहनूँगा। लेकिन वो तबसे टंगी है अलगनी पर, वैसी ही गन्दी, पसीने की सफ़ेद लकीरों से सजी। मैंने नहीं धुलवाई।

उससे तुम्हारी खुशबू जो आती है।

*** *** ***

तुम्हारा रुमाल, जो छूट गया था पिछली बार टेबल पर। भाई के आने पर उसे मैंने किताबों के पीछे छिपा दिया था। आज जब किताबें उठाईं पढ़ने को, वो रूमाल मिला।

मैंने किताबें वापस रख दीं। अब रूमाल पढ़ रही हूँ।

*** *** ***

तुम्हारी तस्वीर जो लगा रखी है मैंने दीवार पर, उसे देखकर ट्यूशन पढ़ने आये लड़के ने पूछा, “ये कौन हैं आपके” मुझसे कुछ कहते नहीं बना।

सोचा कि अगली बार आओगे, तो तुम्हीं से पूछ लूँगी।

*** *** ***

सुनो, पिछली बार तुमने जो बादाम खरीदकर रख दिए थे और कहा था कि रोज़ खाना। उनमें घुन लग गए थे, फ़ेंक दिए। अगली बार आना तो फिर रख जाना।

खाऊँगी नहीं, तो देखकर याद ही करूँगी तुम्हें।

*** *** ***

तुमने फोन पर कहा था, “अब भी दिन में पाँच बार चाय पीती हो। कम कर दो। देखो, अक्सर एसिडिटी हो जाती है तुम्हें।” मैंने कहा, “कम कर दी।”

पता है क्यों? खुद जो बनानी पड़ती है।

*** *** ***

हम अक्सर उन चीज़ों को ढूँढ़ते हैं, जो मिल नहीं सकतीं और उनकी उपेक्षा कर देते हैं, जो हमारे पास होती हैं। मैंने कभी तुम्हारे प्यार की कद्र नहीं की। सहज ही मिल गया था ना।

अब नहीं करूँगी नाराज़ तुम्हें, तुम्हारी कसम। एक बार लौट आओ।

*** *** ***

इस दुनिया में कोई शान्ति ढूँढ़ता है, कोई ज्ञान, कोई भक्ति, कोई मुक्ति, कोई प्रेम। मैं तुमसे तुम्हारा ही पता पूछकर तुमको ढूँढ़ती हूँ और खुद खो जाती हूँ।

मुझे ढूँढ़ दो ना।

people _76_

39 विचार “लिखि लिखि पतियाँ&rdquo पर;

  1. तुम्हारे लिखे में अपना चेहरा अक्सर दिख जाता था। इस बार कितना तलाशा, नहीं मिला। जिसका मिला वो कितना खुश होगा ये जान कर। कितनी ईमानदार पर कितनी तो कमीनी मुस्कान खिलेगी उसके चेहरे पर।
    जाओ जालिम आज बस दर्द दिया लोशन न हुए।

  2. इस प्यार को नया आयाम देती आपकी ये बहुत उम्दा रचना ..भाव पूर्ण रचना .. बहुत खूब अच्छी रचना इस के लिए आपको बहुत – बहुत बधाई

    मेरी नई रचना

    खुशबू
    प्रेमविरह

  3. आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 27/02/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

  4. तुम्हारा रुमाल, जो छूट गया था पिछली बार टेबल पर। भाई के आने पर उसे मैंने किताबों के पीछे छिपा दिया था। आज जब किताबें उठाईं पढ़ने को, वो रूमाल मिला।

    मैंने किताबें वापस रख दीं। अब रूमाल पढ़ रही हूँ।
    उफ़ उफ़ …
    और हाँ ..बादाम वेस्ट करना अच्छी बात नहीं , बहुत महंगे आते हैं 😛

  5. सच्ची ये प्यार पता नहीं क्या क्या करवाता है, वे अहसास जो केवल अहसास होते हैं उन्हें शब्दों में ढ़ालना भी तो प्यार जैसी कला है। हम भी पहले अपनी डायरी में लिखते थे, पर हमारे घर के प्यारे लोगों को वो पसंद नहीं आती थी और अटाले में हमारे प्यार की पंक्तियों को बेच दिया, काश कि उस समय भी इंटरनेट जैसा कुछ होता ।

  6. इश्क़े मज़ाजी से इश्क़े हक़ीक़ी की जो राह आपने निकाली है…वो अद्भुत है। कबीर की कुछ पंक्तियां धुंधली सी याद आ रही हैं…हो सकता है…- शब्दों में एक-दो हेरफेर हो जाए…
    हमन इश्क़ का मस्ताना…हमन को होशियारी क्या..
    राहें आज़ाद में..या जग में हमन दुनिया से यारी क्या…

    1. मैं सोच रही थी कि मैंने जिस तरह से बात को दुनियावी बातों से लेकर दर्शन में ले जाकर छोड़ा है, उस पर किसी का ध्यान क्यों नहीं गया. लेकिन अब खुश हूँ कि कम से कम किसी की नज़र तो उस ओर गयी. धन्यवाद !

  7. बहुत उम्दा ..भाव पूर्ण रचना .. बहुत खूब अच्छी रचना इस के लिए आपको बहुत – बहुत बधाई

    आज की मेरी नई रचना जो आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार कर रही है

    ये कैसी मोहब्बत है

    खुशबू

  8. विद्यापति की राधा की साड़ी नहीं धुलवाती क्योंकि आखिरी बार गोविन्द गले मिले तो उनके पसीने की गंध उसमें रच बस गई थी। लेकिन तुम्हारी बात और भी रूमानी है आराधना।

  9. कमाल की अभिव्यक्ति
    “रूमाल पढ रही हूं”
    “आओगे, तुम्हीं से पूछ लूंगी”
    “पसीने की लकीरों से सजी, खूशबू आती है”
    “याद आती नहीं, जाती ही नहीं”
    छोटी सी पोस्ट में ………….. चरमसीमा दिखा दी….

टिप्पणी करे