टैग: यादें

होली का त्यौहार और औरतें

इलाहाबाद में मैं हॉस्टल में रहती थी| मुझे बचपन से होली का त्यौहार बहुत पसंद था| हमलोग सारा दिन होली खेलते थे| लेकिन इलाहाबाद आने के बाद होली के लेकर बिलकुल अलग अनुभव हुआ| होली के आसपास के तीन-चार दिन हमें हॉस्टल में एक तरह से कैद रहना पड़ता था। हम कैम्पस तक में नहीं … पढ़ना जारी रखें होली का त्यौहार और औरतें

साइकिल वाली लड़की

साइकिल चलाये ज़माना बीत गया. अब सोचते हैं कि चला कि पायेंगे या नहीं? पता नहीं. लेकिन फिर से एक बार साइकिल पर बैठकर दूर-दराज के गाँवों में निकल जाने का मन करता है, जैसे बचपन में करते थे. बाऊ  के ड्यूटी से वापस लौटते ही मेरे और भाई के बीच होड़ लग जाती थी … पढ़ना जारी रखें साइकिल वाली लड़की

वो ऐसे ही थे (3)

मेरी और बाऊ की उम्र में लगभग 42-43 साल का अंतर था, यानि लगभग दो पीढ़ी जितना. कहते हैं कि एक पीढ़ी के बाद 'पीढ़ी अंतराल' समाप्त हो जाता है. इसीलिये दादा-पोते में ज़्यादा पटती है और शायद इसीलिए हम बच्चों की भी बाऊ से खूब बनती थी. मैं उनके ज़्यादा ही मुँह लगी थी. … पढ़ना जारी रखें वो ऐसे ही थे (3)

जंगल जलेबी, स्लेटी रुमाल, नकचढ़ी लड़की और पहाड़ी लड़का

बचपन की कुछ बातें ऐसी होती हैं, जिनका मतलब उस समय समझ में नहीं आता है. जब हम बड़े हो जाते हैं, तब समझ में आता है कि अमुक काम को करने से, किसी विशेष व्यक्ति से मिलने से या किसी जगह जाने से क्यों रोका गया था? समझ ही कितनी होती है तब? ऐसे … पढ़ना जारी रखें जंगल जलेबी, स्लेटी रुमाल, नकचढ़ी लड़की और पहाड़ी लड़का

बीते हुए दिन… फिर से नॉस्टेल्जिया

नॉस्टेल्जिया बड़ी अजीब सी चीज़ होती है। पता नहीं ये एक मानसिक स्थिति है या मानसिक विकार या बीमारी, लेकिन है अजीब। मुझे लगता है कि कुछ लोग प्रवृत्ति से ही अतीतजीवी होते हैं और ये उनकी बीमारी नहीं होती। या तो शौक होता है या फिर आदत या खुशफहमी कि वो दिन लौटकर आयेंगे, … पढ़ना जारी रखें बीते हुए दिन… फिर से नॉस्टेल्जिया

खुरपेंचें, खुराफातें…पीढ़ी दर पीढ़ी

जी, खुरपेंची होना हमारे बैसवारा की सबसे बड़ी विशेषता है. बड़े-बड़े लम्बरदार भी इससे बाज नहीं आते. बचपन से ऐसी खुराफातें देखकर बड़ी होने के बाद भी मैं इतनी सीधी (?) हूँ, इससे सिद्ध होता है कि वातावरण हमेशा ही आपके ऊपर 'बुरा' असर नहीं डालता 🙂 मेरे बाऊ के दोस्त बसंत चाचा, उम्र में … पढ़ना जारी रखें खुरपेंचें, खुराफातें…पीढ़ी दर पीढ़ी

अँगीठी पर भुने भुट्टे और स्टीम इंजन के दिन

बचपन अलग-अलग मौसमों में अलग खुशबुओं और रंगों के साथ याद आता है। डॉ॰ अनुराग के एक अपडेट ने यादों को क्या छेड़ा, परत दर परत यादें उधड़ती गयीं, जिंदगी के पन्ने दर पन्ने पलटते गए। जैसे बातों से बातें निकलती हैं, वैसे ही यादों से यादें। अब बरसात का मौसम है, तो भुट्टे याद आये, … पढ़ना जारी रखें अँगीठी पर भुने भुट्टे और स्टीम इंजन के दिन

दिए के जलने से पीछे का अँधेरा और गहरा हो जाता है…

मैं शायद कोई किताब पढ़ रही थी या टी.वी. देख रही थी, नहीं मैं एल्बम देख रही थी, बचपन की फोटो वाली. अधखुली खिड़की से धुंधली सी धूप अंदर आ रही थी. अचानक डोरबेल बजती है. मैं दरवाजा खोलती हूँ, कूरियर वाला हाथ में एक पैकेट थमाकर चला जाता है. मैं वापस मुडती हूँ, तो … पढ़ना जारी रखें दिए के जलने से पीछे का अँधेरा और गहरा हो जाता है…