टैग: आस-पड़ोस

अपने अपने दुःख

मैं और शीतल रोज़ रात में खाने के बाद मुहल्ले के पीछे जुगनू गोली को टहलाने निकलते हैं। वहाँ लगभग रोज़ एक बुजुर्ग सरदार जी टहलते दिखते हैं। कुछ दिनों से हमारा शगल था उनके बारे में अनुमान लगाने का। उनको फोन पर बात करते देख मैं कहती कि परिवार से छिपकर घर से बाहर … पढ़ना जारी रखें अपने अपने दुःख

खतरा कहीं भी हो सकता है

आज मेरे साथ एक ऐसी घटना हुयी, जिसने मुझे कुछ विचलित कर दिया और थोड़ा दहला भी दिया. मैं अक्सर शाम को सोना को लेकर अपने मोहल्ले के पीछे की खाली जगह पर टहलने जाती हूँ. शाम को वहाँ बहुत भीड़ होती है. यहाँ औरतें और वृद्धजन टहलते हुए और बच्चे और युवा खेलते नज़र … पढ़ना जारी रखें खतरा कहीं भी हो सकता है

आस-पड़ोस की बातें

मेरा मोहल्ला संभवतः दिल्ली का सबसे इंटरेस्टिंग मोहल्ला होगा. इसके ऊपर मैंने कुछ दिन पहले एक लेख भी लिखा था मोहल्ला मोहब्बत वाला 🙂 . यहाँ पिछले पाँच सालों से रह रही हूँ. इसलिए काफी लोगों से परिचय भी हो गया है. लोगों से मेरा मतलब दुकानदारों से है, बकिया दोस्त-वोस्त तो हैं ही. यहाँ सुबह … पढ़ना जारी रखें आस-पड़ोस की बातें

मेरा मोहल्ला मोहब्बत वाला

कभी-कभी मेरा किसी विषय पर लिखने का जोर से मन होता है और मैं लिख जाती हूँ. कुछ दिन पहले अपने मोहल्ले पर एक लेख लिख डाला, लेकिन पोस्ट नहीं किया. ऐसा मैंने पहली बार किया. अमूमन तो मैं सीधे डैशबोर्ड पर टाइप करती हूँ और पोस्ट कर देती हूँ. कभी ड्राफ्ट नहीं बनाती, पर … पढ़ना जारी रखें मेरा मोहल्ला मोहब्बत वाला