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फेसबुक, ज़िंदगी, अवसाद और आत्महत्या

पिछले एक महीने में फेसबुक की दो महिला मित्रों की आत्महत्या की खबर ने अंदर तक हिलाकर रख दिया है. समझ में नहीं आता कि ज़िंदगी से भरी, नियमित फेसबुक अपडेट्स करने वाली लड़कियों को आखिर किस दुःख ने ज़िंदगी खत्म करने को मजबूर किया होगा? वो बात इतनी मामूली तो नहीं ही हो सकती … पढ़ना जारी रखें फेसबुक, ज़िंदगी, अवसाद और आत्महत्या

ब्लू

ज़िंदगी, एक कैनवस पर बनी इन्द्रधनुषी तस्वीर है, जिसमें बैंगनी और हरे के बीच नीला रंग आता है। वही नीला रंग जो आकाश, समुद्र और पहाड़ों को अपने रंग में रंग लेता है। मेरा मनपसंद उदासी का गहरा नीला रंग, जितना उदास, उतना ही सुकून देने वाला भी। वैसे  तो और भी बहुत से रंग … पढ़ना जारी रखें ब्लू

धूसर

दुनिया को जिस रंग के चश्मे से देखो, उस रंग की दिखती है. अभी धूसर रंग छाया हुआ है. जैसे अभी-अभी आँधी आयी हो और सब जगह धूल पसर गई हो या कहीं आग लगने पर धुँआ फैला हो या सूरज डूब चुका हो और चाँद अभी निकला ना हो. उम्र का तीसरा दशक होता … पढ़ना जारी रखें धूसर

छूटा हुआ कुछ

पिछले कुछ दिनों से मुझे मेरा घर बहुत याद आ रहा है. बाऊ के रहते डेढ़-दो महीने भी जिससे दूर नहीं रह पाती थी, आज उसे छूटे हुए पाँच साल से ज्यादा हो रहे हैं. कितना सोचा कि अब उस घर में लौटकर कभी नहीं जाऊँगी. पर क्या करूँ? इतनी बड़ी दुनिया में उस घर … पढ़ना जारी रखें छूटा हुआ कुछ

अम्मा और मैं- एक अनोखा रिश्ता (3.)

कुछ महीने पहले एक कोशिश की थी, अठारह साल पहले इस दुनिया से रूठ गयी अपनी माँ से अपने रिश्ते को समझने की, उसे शब्दों में बाँधने की. सोचा था तीन कड़ियों में कुछ समेट पाऊँगी. वैसे तो माँ की यादों को कुछ शब्दों में नहीं समाया जा सकता, पर ये कोशिश, कुछ लिखने के … पढ़ना जारी रखें अम्मा और मैं- एक अनोखा रिश्ता (3.)

मौत की खामोशी की धुन

अन्तर्जाल की दुनिया... एक आभासी संसार. किसी-किसी के लिये दुनिया से भागने की सबसे अच्छी जगह है ये...पर खुद से भागना हो तो? कोई जगह ही नहीं है, आदमी खुद से भाग ही नहीं सकता, कहीं भी नहीं, कभी भी नहीं. तो करें क्या, जब ये दुनिया बेमानी लगने लगे...कहाँ जायें, जब खुद अपने ही … पढ़ना जारी रखें मौत की खामोशी की धुन

वो ऐसे ही थे (1.)

इस ३० जून को उनको गए पूरे चार साल हो गए... इन सालों में एक दिन भी ऐसा नहीं गुजरा, जब मैंने उन्हें याद ना किया हो... आखिर अम्मा के बाद वही तो मेरे माँ-बाप दोनों थे. परसों उनकी पुण्यतिथि थी और मज़े की बात ये कि मैं उदास नहीं थी. मुझे उनके कुछ बड़े … पढ़ना जारी रखें वो ऐसे ही थे (1.)

अवसाद-२ (साँझ की धूप)

धान के खेतों पर दूर तक फैली, थकी, निढाल पीली-पीली साँझ की धूप, आ जाती है खिड़की से मेरे कमरे में, और भर देती है उसे रक्ताभ पीले रंग से, ... ... इस उदास पीले रंग की अलौकिक आभा से मिल जाता है मेरे उदास मन का पीला रंग, और चल देता है मेरा मन … पढ़ना जारी रखें अवसाद-२ (साँझ की धूप)