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शुक्रिया दोस्त, इंसानियत पर मेरा भरोसा बनाये रखने के लिए

बात तब की है, जब मैं इलाहाबाद में पढ़ती थी और वहाँ से आजमगढ़ के गाँव में स्थित अपने घर अक्सर अकेली आती-जाती थी. मैं बचपन से एक छोटे शहर में पली-बढ़ी थी, और वह भी रेलवे स्टेशन के आसपास जहाँ कभी रात नहीं होती. मेरे लिए बहुत मुश्किल था बस से इलाहाबाद से आजमगढ़ … पढ़ना जारी रखें शुक्रिया दोस्त, इंसानियत पर मेरा भरोसा बनाये रखने के लिए

वो ऐसे ही थे (3)

मेरी और बाऊ की उम्र में लगभग 42-43 साल का अंतर था, यानि लगभग दो पीढ़ी जितना. कहते हैं कि एक पीढ़ी के बाद 'पीढ़ी अंतराल' समाप्त हो जाता है. इसीलिये दादा-पोते में ज़्यादा पटती है और शायद इसीलिए हम बच्चों की भी बाऊ से खूब बनती थी. मैं उनके ज़्यादा ही मुँह लगी थी. … पढ़ना जारी रखें वो ऐसे ही थे (3)