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अपने अपने दुःख

मैं और शीतल रोज़ रात में खाने के बाद मुहल्ले के पीछे जुगनू गोली को टहलाने निकलते हैं। वहाँ लगभग रोज़ एक बुजुर्ग सरदार जी टहलते दिखते हैं। कुछ दिनों से हमारा शगल था उनके बारे में अनुमान लगाने का। उनको फोन पर बात करते देख मैं कहती कि परिवार से छिपकर घर से बाहर … पढ़ना जारी रखें अपने अपने दुःख

फेसबुक, ज़िंदगी, अवसाद और आत्महत्या

पिछले एक महीने में फेसबुक की दो महिला मित्रों की आत्महत्या की खबर ने अंदर तक हिलाकर रख दिया है. समझ में नहीं आता कि ज़िंदगी से भरी, नियमित फेसबुक अपडेट्स करने वाली लड़कियों को आखिर किस दुःख ने ज़िंदगी खत्म करने को मजबूर किया होगा? वो बात इतनी मामूली तो नहीं ही हो सकती … पढ़ना जारी रखें फेसबुक, ज़िंदगी, अवसाद और आत्महत्या

धूसर

दुनिया को जिस रंग के चश्मे से देखो, उस रंग की दिखती है. अभी धूसर रंग छाया हुआ है. जैसे अभी-अभी आँधी आयी हो और सब जगह धूल पसर गई हो या कहीं आग लगने पर धुँआ फैला हो या सूरज डूब चुका हो और चाँद अभी निकला ना हो. उम्र का तीसरा दशक होता … पढ़ना जारी रखें धूसर

छूटा हुआ कुछ

पिछले कुछ दिनों से मुझे मेरा घर बहुत याद आ रहा है. बाऊ के रहते डेढ़-दो महीने भी जिससे दूर नहीं रह पाती थी, आज उसे छूटे हुए पाँच साल से ज्यादा हो रहे हैं. कितना सोचा कि अब उस घर में लौटकर कभी नहीं जाऊँगी. पर क्या करूँ? इतनी बड़ी दुनिया में उस घर … पढ़ना जारी रखें छूटा हुआ कुछ

मौत की खामोशी की धुन

अन्तर्जाल की दुनिया... एक आभासी संसार. किसी-किसी के लिये दुनिया से भागने की सबसे अच्छी जगह है ये...पर खुद से भागना हो तो? कोई जगह ही नहीं है, आदमी खुद से भाग ही नहीं सकता, कहीं भी नहीं, कभी भी नहीं. तो करें क्या, जब ये दुनिया बेमानी लगने लगे...कहाँ जायें, जब खुद अपने ही … पढ़ना जारी रखें मौत की खामोशी की धुन

वो ऐसे ही थे (1.)

इस ३० जून को उनको गए पूरे चार साल हो गए... इन सालों में एक दिन भी ऐसा नहीं गुजरा, जब मैंने उन्हें याद ना किया हो... आखिर अम्मा के बाद वही तो मेरे माँ-बाप दोनों थे. परसों उनकी पुण्यतिथि थी और मज़े की बात ये कि मैं उदास नहीं थी. मुझे उनके कुछ बड़े … पढ़ना जारी रखें वो ऐसे ही थे (1.)

फागुन में बरसात

ये कोई अच्छी बात थोड़े ही है. अच्छी ख़ासी फगुनहट चल रही थी. मौसम में मस्ती की फ़ुहार थी. थोड़ा-थोड़ा आलस ज़रूर था, लेकिन कुल मिलाकर शिशिर की जड़ता समाप्त होने को थी. ब्लॉग-फाग छाया हुआ था. सब कुछ ठीक था...फिर...क्या ज़रूरत थी ये कजरी-वजरी की बात छेड़ने की?? बहुत खराब बात हुई. जब से … पढ़ना जारी रखें फागुन में बरसात

फिर एक इंतज़ार

तुम क्यों आते हो?? तुम्हारे आने के साथ आता है डर तुम्हारे जाने का, मैं भी  कितनी पागल हूँ... कि तुम्हारे आने से पहले तकती हूँ राह तुम्हारी, और करती हूँ घण्टों इंतज़ार... और तुम्हारे आने के बाद हो जाती हूँ उदास कि कुछ देर रहकर साथ लौट जाओगे तुम, पीछे छोड़ जाओगे उदासी, सूनापन … पढ़ना जारी रखें फिर एक इंतज़ार