श्रेणी: कविता सा कुछ/ poetry

झूमना अंतरिक्ष में नक्षत्रों के बीच

तुमसे मिलना है फूलों की घाटी में होना, असंख्य पुष्पों की हज़ारों खुशबुओं और सैकड़ों रंगों के बीच डूब जाना, ढाँप लेना मुँह को शीतल परागकणों से, घास के मखमली कालीन पर लोट लगाना.... ताकना तुम्हारी आँखों में, गहरे नीले आसमान को ... तुमसे मिलना है झूमना अंतरिक्ष में नक्षत्रों के बीच हलके और भारहीन … पढ़ना जारी रखें झूमना अंतरिक्ष में नक्षत्रों के बीच

दीवाने लोग

दीवाने लोग पड़ ही जाते हैं अक्सर किसी न किसी के प्यार में अफ़सोस ये कि जिससे प्यार है, उसे पता ही नहीं, जाने क्या मिलता है और जाने क्या खो जाता है, रात आती है, मगर नींद गुमशुदा है कहीं, जागकर लिखते हैं कुछ-कुछ डायरी में दीवाने दूसरे ही पल काटकर उसे, लिखते हैं … पढ़ना जारी रखें दीवाने लोग

प्यार करते हुए

प्यार करते हुएजब-जब लड़के ने डूब जाना चाहालड़की उसे उबार लाई।जब-जब लड़के ने खो जाना चाहा प्यार मेंलड़की ने उसे नयी पहचान दी।लड़के ने कहा, “प्यार करते हुए अभी इसी वक्तमर जाना चाहता हूँ मैं तुम्हारी बाहों में”लड़की बोली, “देखो तो ज़िंदगी कितनी खूबसूरत है,और वो तुम्हारी ही तो नहीं, मेरी भी हैतुम्हारे परिवार, समाज … पढ़ना जारी रखें प्यार करते हुए

अम्मा के सपने

वैसे तो माँ को याद करने के लिए कोई एक ख़ास दिन नहीं होता, वो हर समय पास-पास ही रहती है, उसकी तस्वीर आँखों में और यादें हर वक्त दिल में होती हैं,लेकिन फिर भी एक ख़ास दिन जब सब अपनी-अपनी माँ को याद करते हैं तो मुझे भी अम्मा की याद बेतरह आने लगती … पढ़ना जारी रखें अम्मा के सपने

मैं प्यासी

... जब घुमड़ घिरी घनघोर घटा रह-रहके दामिनी चमक उठी, उपवन में नाच उठे मयूर सौंधी मिट्टी की महक बिखरी, बूँदें बरसीं रिमझिम-रिमझिम सूखी धरती की प्यास बुझी, पर मैं बिरहन प्यासी ही रही... ... ... ... ये प्रकृति का भरा-पूरा प्याला हर समय छलकता रहता है, ऋतुओं के आने-जाने का क्रम निशदिन चलता रहता … पढ़ना जारी रखें मैं प्यासी

ओढ़े रात ओढ़नी बादल की

मैं अक्सर जो सोचती हूँ, कर डालती हूँ. कुछ समय से दिल्ली से मन ऊबा था. आठ महीनों से कहीं बाहर नहीं निकली थी. गर्मी ने और नाक में दम कर दिया... मन हुआ कहीं दूर बादलों की छाँव में चले जाने का, तो निकल लिए बाहर. दस घंटे का बस का सफर करके नैनीताल … पढ़ना जारी रखें ओढ़े रात ओढ़नी बादल की

घर और महानगर

घर (१.) शाम ढलते ही पंछी लौटते हैं अपने नीड़ लोग अपने घरों को, बसों और ट्रेनों में बढ़ जाती है भीड़ पर वो क्या करें ? जिनके घर हर साल ही बसते-उजड़ते हैं, यमुना की बाढ़ के साथ. (२.) चाह है एक छोटे से घर की जिसकी दीवारें बहुत ऊँची न हो, ताकि हवाएँ … पढ़ना जारी रखें घर और महानगर