टैग: गाँधी विहार

अपने अपने दुःख

मैं और शीतल रोज़ रात में खाने के बाद मुहल्ले के पीछे जुगनू गोली को टहलाने निकलते हैं। वहाँ लगभग रोज़ एक बुजुर्ग सरदार जी टहलते दिखते हैं। कुछ दिनों से हमारा शगल था उनके बारे में अनुमान लगाने का। उनको फोन पर बात करते देख मैं कहती कि परिवार से छिपकर घर से बाहर … पढ़ना जारी रखें अपने अपने दुःख

सडकों पर जीने वाले

हर शनिवार मोहल्ले में सब्जी बाज़ार लगता है. वहीं सब्जी बेचता है वो. इतना ज़्यादा बोलता है कि लडकियाँ उसको बदतमीज समझकर सब्जी नहीं लेतीं और लड़के मज़ाक उड़ाकर मज़े लेते हैं. मैं उससे सब्जी इसलिए लेती हूँ क्योंकि उनकी क्वालिटी अच्छी होती है. मुझे देखकर दूर से ही बुलाता है. कभी 'बहन' कहता है … पढ़ना जारी रखें सडकों पर जीने वाले

मेरा मोहल्ला मोहब्बत वाला

कभी-कभी मेरा किसी विषय पर लिखने का जोर से मन होता है और मैं लिख जाती हूँ. कुछ दिन पहले अपने मोहल्ले पर एक लेख लिख डाला, लेकिन पोस्ट नहीं किया. ऐसा मैंने पहली बार किया. अमूमन तो मैं सीधे डैशबोर्ड पर टाइप करती हूँ और पोस्ट कर देती हूँ. कभी ड्राफ्ट नहीं बनाती, पर … पढ़ना जारी रखें मेरा मोहल्ला मोहब्बत वाला