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अवसाद-२ (साँझ की धूप)

धान के खेतों पर दूर तक फैली, थकी, निढाल पीली-पीली साँझ की धूप, आ जाती है खिड़की से मेरे कमरे में, और भर देती है उसे रक्ताभ पीले रंग से, ... ... इस उदास पीले रंग की अलौकिक आभा से मिल जाता है मेरे उदास मन का पीला रंग, और चल देता है मेरा मन … पढ़ना जारी रखें अवसाद-२ (साँझ की धूप)

अवसाद-1 (अकेलापन)

अखरने लगता है अकेलापन शाम को... जब चिड़ियाँ लौटती हैं अपने घोसलों की ओर, और सूरज छिप जाता है पेड़ों की आड़ में, मैं हो जाती हूँ और भी अकेली. ... ... मैं अकेली हूँ... सामने पेड़ की डाल पर बैठे उस घायल पक्षी की तरह, जो फड़फड़ाता है पंख उड़ने के लिये पर... उड़ … पढ़ना जारी रखें अवसाद-1 (अकेलापन)