टैग: अम्मा

साइकिल वाली लड़की

साइकिल चलाये ज़माना बीत गया. अब सोचते हैं कि चला कि पायेंगे या नहीं? पता नहीं. लेकिन फिर से एक बार साइकिल पर बैठकर दूर-दराज के गाँवों में निकल जाने का मन करता है, जैसे बचपन में करते थे. बाऊ  के ड्यूटी से वापस लौटते ही मेरे और भाई के बीच होड़ लग जाती थी … पढ़ना जारी रखें साइकिल वाली लड़की

अँगीठी पर भुने भुट्टे और स्टीम इंजन के दिन

बचपन अलग-अलग मौसमों में अलग खुशबुओं और रंगों के साथ याद आता है। डॉ॰ अनुराग के एक अपडेट ने यादों को क्या छेड़ा, परत दर परत यादें उधड़ती गयीं, जिंदगी के पन्ने दर पन्ने पलटते गए। जैसे बातों से बातें निकलती हैं, वैसे ही यादों से यादें। अब बरसात का मौसम है, तो भुट्टे याद आये, … पढ़ना जारी रखें अँगीठी पर भुने भुट्टे और स्टीम इंजन के दिन

दिए के जलने से पीछे का अँधेरा और गहरा हो जाता है…

मैं शायद कोई किताब पढ़ रही थी या टी.वी. देख रही थी, नहीं मैं एल्बम देख रही थी, बचपन की फोटो वाली. अधखुली खिड़की से धुंधली सी धूप अंदर आ रही थी. अचानक डोरबेल बजती है. मैं दरवाजा खोलती हूँ, कूरियर वाला हाथ में एक पैकेट थमाकर चला जाता है. मैं वापस मुडती हूँ, तो … पढ़ना जारी रखें दिए के जलने से पीछे का अँधेरा और गहरा हो जाता है…

अम्मा के सपने

वैसे तो माँ को याद करने के लिए कोई एक ख़ास दिन नहीं होता, वो हर समय पास-पास ही रहती है, उसकी तस्वीर आँखों में और यादें हर वक्त दिल में होती हैं,लेकिन फिर भी एक ख़ास दिन जब सब अपनी-अपनी माँ को याद करते हैं तो मुझे भी अम्मा की याद बेतरह आने लगती … पढ़ना जारी रखें अम्मा के सपने

अम्मा और मैं- एक अनोखा रिश्ता (3.)

कुछ महीने पहले एक कोशिश की थी, अठारह साल पहले इस दुनिया से रूठ गयी अपनी माँ से अपने रिश्ते को समझने की, उसे शब्दों में बाँधने की. सोचा था तीन कड़ियों में कुछ समेट पाऊँगी. वैसे तो माँ की यादों को कुछ शब्दों में नहीं समाया जा सकता, पर ये कोशिश, कुछ लिखने के … पढ़ना जारी रखें अम्मा और मैं- एक अनोखा रिश्ता (3.)

भागना परछाइयों के पीछे-पीछे…

छुटपन में, जब पेड़ों की परछाइयाँ धूप से लड़ते-लड़ते, शाम को थककर ज़मीन पर पसर जाती थीं, तो हम उनकी फुनगियों पर उछल-कूद  मचाते थे और कहते थे "देखो, हम पेड़ की फुनगी पर हैं"---बचपन कितना मासूम होता है, परछाइयों से खेलकर खुश हो लेता है. पर, हम अब भी तो वही कर रहे हैं---आभासी … पढ़ना जारी रखें भागना परछाइयों के पीछे-पीछे…

अम्मा और मैं- एक अनोखा रिश्ता (2.)

मेरे और अम्मा के अघोषित युद्ध में अक्सर दीदी शान्ति-स्थापना का असफल प्रयास किया करती थीं. वो एक ओर मुझे समझाती कि अम्मा तुम्हें बहुत प्यार करती हैं, बस दिखाती नहीं हैं, दूसरी तरफ अम्मा से कहती कि ज्यादा मार-पीट से गुड्डू और ढीठ होती जायेगी. न मुझे दीदी की बात समझ में आती और … पढ़ना जारी रखें अम्मा और मैं- एक अनोखा रिश्ता (2.)

अम्मा और मैं- एक अनोखा रिश्ता (1.)

अम्मा-...लगभग बीस साल पहलेमैंने जब से होश सँभाला, अपने और अम्मा के बीच एक अजीब सा तनाव पाया. शायद इसका कारण मेरा छोटा भाई रहा हो, जिसकी वजह से मैं "दुधकटही बिटिया" बन गई थी या शायद कुछ और, पता नहीं, पर हम दोनों में कभी पटी नहीं. मैं जब कुछ महीने की थी, तभी मेरा … पढ़ना जारी रखें अम्मा और मैं- एक अनोखा रिश्ता (1.)