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अपने अपने दुःख

मैं और शीतल रोज़ रात में खाने के बाद मुहल्ले के पीछे जुगनू गोली को टहलाने निकलते हैं। वहाँ लगभग रोज़ एक बुजुर्ग सरदार जी टहलते दिखते हैं। कुछ दिनों से हमारा शगल था उनके बारे में अनुमान लगाने का। उनको फोन पर बात करते देख मैं कहती कि परिवार से छिपकर घर से बाहर … पढ़ना जारी रखें अपने अपने दुःख

पंखुरियाँ

एक पत्थर पर थोड़ी चोट लगी थी. उस पर मिट्टी जम गयी. बारिश हुयी और कुछ दिन बाद उस मिट्टी में जंगली फूल खिल गए. उन फूलों पर मँडराती हैं पीले रंग की तितलियाँ और गुनगुनाते हैं भवँरे. उन्हें देख मुझे तुम्हारी याद आती है. तुम्हीं ने तो बताया था सबसे पहली बार कि फूल … पढ़ना जारी रखें पंखुरियाँ

ब्लू

ज़िंदगी, एक कैनवस पर बनी इन्द्रधनुषी तस्वीर है, जिसमें बैंगनी और हरे के बीच नीला रंग आता है। वही नीला रंग जो आकाश, समुद्र और पहाड़ों को अपने रंग में रंग लेता है। मेरा मनपसंद उदासी का गहरा नीला रंग, जितना उदास, उतना ही सुकून देने वाला भी। वैसे  तो और भी बहुत से रंग … पढ़ना जारी रखें ब्लू

लिखि लिखि पतियाँ

सुनो प्यार, तुमने कहा था जाते-जाते कि शर्ट धुलवाकर और प्रेस करवाकर रख देना। अगली बार आऊंगा तो पहनूँगा। लेकिन वो तबसे टंगी है अलगनी पर, वैसी ही गन्दी, पसीने की सफ़ेद लकीरों से सजी। मैंने नहीं धुलवाई। उससे तुम्हारी खुशबू जो आती है। *** *** *** तुम्हारा रुमाल, जो छूट गया था पिछली बार … पढ़ना जारी रखें लिखि लिखि पतियाँ

धूसर

दुनिया को जिस रंग के चश्मे से देखो, उस रंग की दिखती है. अभी धूसर रंग छाया हुआ है. जैसे अभी-अभी आँधी आयी हो और सब जगह धूल पसर गई हो या कहीं आग लगने पर धुँआ फैला हो या सूरज डूब चुका हो और चाँद अभी निकला ना हो. उम्र का तीसरा दशक होता … पढ़ना जारी रखें धूसर

इस मोड़ से जाते हैं …

बहुत-बहुत मुश्किल होता है अपने ही फैलाए हुए जाल से बाहर निकलना. पहले तो हम चीज़ों को सीरियसली लेते ही नहीं, हर काम पेंडिंग में डालते चलते हैं और जब यही पेंडिंग बातें, मसले, फैसले आपस में उलझ जाते हैं, तो उन्हें सुलझाना मुश्किल से मुश्किलतर होता जाता है. कुल मिलाकर मुझे लगता है कि … पढ़ना जारी रखें इस मोड़ से जाते हैं …

दर्दे-ए-हिज्र बेहतर है फिर तो तेरे पास होने से

... मुझे तारीखें याद नहीं रहतीं. पिछली दफा तुम किस तारीख को आये, कब गए, अगली बार कब आओगे, कुछ भी नहीं. मैं कैलेण्डर के पन्ने नहीं पलटती, जिससे तुम्हारे जाने का दिन याद रहे... और जब तुम आते हो, तो अपने हाथों से नयी तारीख लगाते हो. तुम्हारे जाने से ज़िंदगी ठहर सी जाती … पढ़ना जारी रखें दर्दे-ए-हिज्र बेहतर है फिर तो तेरे पास होने से

नए साल का उपहार ‘सोना’

कभी-कभी लगता है कि ज़िंदगी कितनी बकैत चीज़ है. कितनी बेरहम. किसी की नहीं सुनती. कभी नहीं रुकती. लोग आयें, बिछड़ जाएँ. साल आयें, बीत जाएँ.  ये चलती ही जाती है. सब कुछ रौंदती. किसी बुलडोज़र की तरह अपना रास्ता बनाती. तो ये चल रही है. तारीखों के आने-जाने का इस पर कोई असर नहीं. … पढ़ना जारी रखें नए साल का उपहार ‘सोना’