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घर और महानगर

घर (१.) शाम ढलते ही पंछी लौटते हैं अपने नीड़ लोग अपने घरों को, बसों और ट्रेनों में बढ़ जाती है भीड़ पर वो क्या करें ? जिनके घर हर साल ही बसते-उजड़ते हैं, यमुना की बाढ़ के साथ. (२.) चाह है एक छोटे से घर की जिसकी दीवारें बहुत ऊँची न हो, ताकि हवाएँ … पढ़ना जारी रखें घर और महानगर

पिल्ला-कथा का अंत

कल रात मैं बिल्कुल नहीं सो पायी. मैं जिस पपी को अपनी गली से उठाकर ले आयी थी. वो हर एक घंटे बाद सू-सू करती थी और फिर कटोरी खटकाती थी, दूध माँगने के लिये. ये भूख भी इतनी कठोर होती है कि बच्चा और कुछ सीखे चाहे न, खाना माँगना ज़रूर सीख जाता है. … पढ़ना जारी रखें पिल्ला-कथा का अंत

ये बेचारे कहाँ जायें???

आज मैं सो नहीं पा रही हूँ. सोचा था कि जल्दी सो जाऊँगी. इधर रोज़ ही तीन-चार बज जाते हैं. पर क्या करूँ?... बात ही ऐसी है. जब आपको मेरे जागने का कारण पता चलेगा तो आप मुझे या तो परले दर्ज़े की बेवकूफ़ समझेंगे या फिर पागल. हुआ यह कि लगभग एक बजे मैं … पढ़ना जारी रखें ये बेचारे कहाँ जायें???