वैसे तो माँ को याद करने के लिए कोई एक ख़ास दिन नहीं होता, वो हर समय पास-पास ही रहती है, उसकी तस्वीर आँखों में और यादें हर वक्त दिल में होती हैं,लेकिन फिर भी एक ख़ास दिन जब सब अपनी-अपनी माँ को याद करते हैं तो मुझे भी अम्मा की याद बेतरह आने लगती है. उसके छोटे-छोटे अरमान, कुछ बेहद साधारण आकांक्षाएं और मामूली से सपने उसे इतना ख़ास क्यों बनाते हैं?
डेढ़ साल पहले माँ पर लिखी एक कविता याद आ रही है, जो कि मेरे ब्लॉग फेमिनिस्ट पोयम्स पर प्रकाशित हो चुकी है.
मेरी अम्मा
बुनती थी सपने
काश और बल्ले से,
कुरुई, सिकहुली
और पिटारी के रूप में,
रंग-बिरंगे सपने…
अपनी बेटियों की शादी के,
कभी चादरों और मेजपोशों पर
काढ़ती थी, गुड़हल के फूल,
और क्रोशिया से
बनाती थी झालरें
हमारे दहेज के लिये,
खुद काट देती थी
लंबी सर्दियाँ
एक शाल के सहारे,
आज…उसके जाने के
अठारह साल बाद,
कुछ नहीं बचा
सिवाय उस शाल के,
मेरे पास उसकी आखिरी निशानी,
उस जर्जर शाल में
महसूस करती हूँ
उसके प्यार की गर्मी…
yah garmi hamesha rahegi… maa hoker jana hoga ise , maa hona kya hota hai !
वाकई यह अहसास किसी खास दिन के लिए अभिशप्त ना हो…
जैसे कि आपके लिये नहीं हैं…
बेहतर…
हर छोटी छोटी चीज बचा कर रखी है माँ ने।
maan ko yaad karne ke liye shabd hamesha chhote pad jate hain.
ek haiku hai—-
dhulni hi thi
bin padhi jeb men
maan ki chitthi thi.
माँ के प्यार की गर्मी ही तो है जो हमें हरदम उर्जा देती है ज़िन्दगी के ऊबड़ खाबड़ रास्ते पर चलने के लिए….
एक शेर याद आ रहा है:
“ वो दुआ सिर्फ माँ की होती है,
जो कभी बेअसर नहीं होती। ”
एहसास से पगी रचना ने वे सारे बिंब खींच लाये जिनमें दिदिया माई द्वारा दी गयी दीक्षा से बेना/सिकहुला/सिउटर-बुनाई सब किया करती थी।
ये समय की कुछ बूदें भी कम नहीं, वक्त वक्त पर धारा बहा देती हैं! आभार..!
बहुत सुन्दर रचना!
—
मातृदिवस की शुभकामनाएँ!
—
बहुत चाव से दूध पिलाती,
बिन मेरे वो रह नहीं पाती,
सीधी सच्ची मेरी माता,
सबसे अच्छी मेरी माता,
ममता से वो मुझे बुलाती,
करती सबसे न्यारी बातें।
खुश होकर करती है अम्मा,
मुझसे कितनी सारी बातें।।
“नन्हें सुमन”
माँ की ताजा यादें हमेशा रहती हैं साथ…सुन्दर रचना.
मातृदिवस की शुभकामनाएँ..
सादर
समीर लाल
http://udantashtari.blogspot.com/
जिस दिन तुम्हारे कारण माँ की आँखोँ में आँसू आते है,
याद रखना, उस दिन तुम्हारा किया सारा धर्मँ…..
आँसू मेँ बह जाता है !
– राकेश खुडिया
गंगानगर http://kankar.peperonity.com
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उस जर्जर शाल में
महसूस करती हूँ
उसके प्यार की गर्मी…
यही एहसास ज़िंदगी भर रहता है साथ …. बहुत सुन्दर भाव लिए रचना ..
माँ के स्मरण मात्र में ऎसी उष्मा है, कि तमाम व्याधियाँ सरल लगने लगती हैं ।
मैं तो इस आयु में भी अम्मा के पेट पर सिर रख कर लेटने में अपार सुख पाता हूँ ।
मां पर सुंदर रचना !!
सांस रोक कर पढ़ी ये कविता….
सुखद एहसासा कराती सुंदर कविता।
अम्मा की बेटियों के प्रति बचपन से ही जो चिंता रहती है,उसे हूबहू कविता में उतार दिया है.माँ के बारे में कुछ भी कहा जाये ,नाकुछ है.माँ के आँचल का प्यार सबको नसीब नहीं है,खासकर शहरी-ज़िन्दगी में !
माँ के बारे में ऐसी भावनापूर्ण कविता पढ़कर या सुनकर रोना आता है,बच्चों की तरह !
आराधना चतुर्वेदी जी हार्दिक अभिवादन –
माँ के ऊपर लिखी गयी ये रचना सराहनीय है सच कहा आप ने माँ का कोई दिन नहीं होता -माँ तो हर पल हर घडी हमारी सांसों में रग रग में बसी है –
निम्न पंक्तियाँ क्या सन्देश दे गयी माँ का न्योछावर होना अपनी संतान पर -माँ को नमन
कभी चादरों और मेजपोशों पर
काढ़ती थी, गुड़हल के फूल,
और क्रोशिया से
बनाती थी झालरें
हमारे दहेज के लिये,
खुद काट देती थी
लंबी सर्दियाँ
एक शाल के सहारे,
शुक्ल भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
( अ=અ , ब=બ , क=ક , इ=ઈ , ख=ખ , च=ચ , ज=જ , फ=ફ , भ=ભ , ल=લ,द=દ,झ=ઝ)
મેરી અમ્મા
બુનતી થી સપને
કાશ ઔર બલ્લે સે,
કુરુઈ, સિકહુલી
ઔર પિટારી કે રૂપ મેં,
રંગ-બિરંગે સપને…
અપની બેટિયોં કી શાદી કે,
કભી ચાદરોં ઔર મેજપોશોં પર
કાઢતી થી, ગુડહલ કે ફૂલ,
ઔર ક્રોશિયા સે
બનાતી થી ઝાલરેં
હમારે દહેજ કે લિયે,
ખુદ કાટ દેતી થી
લંબી સર્દિયાઁ
એક શાલ કે સહારે,
આજ…ઉસકે જાને કે
અઠારહ સાલ બાદ,
કુછ નહીં બચા
સિવાય ઉસ શાલ કે,
મેરે પાસ ઉસકી આખિરી નિશાની,
ઉસ જર્જર શાલ મેં
મહસૂસ કરતી હૂઁ
ઉસકે પ્યાર કી ગર્મી…
માકા પ્યાર અનોખા હૈ, બહુત અચ્છી કવિતા લિખી હૈ,
http://kenpatel.wordpress.com/
मैंने आपका ब्लॉग देखा. मुझे गुजराती सीखने का बहुत मन था. अब इसकी सहायता से कुछ-कुछ सीख सकूँगी. धन्यवाद !
( अ=અ , ब=બ , क=ક , इ=ઈ , ख=ખ , च=ચ , ज=જ , फ=ફ , भ=ભ , ल=લ,द=દ,झ=ઝ)
આરાધનાજી,
આપ ગૂગ્લ્સ ઉપર જાએ ઔર ગુજરાતી શીખનેકી પ્રેક્ટીસ કીજીએ .ગુજરાતી મુલાક્ષરપે હિન્દીકી તરહ ક્ષિતિજલાઈન નહિ લગાઈ જાતી.
મદદકે લિયે મેરે બ્લોગપે જરૂર લિખના.
ધન્યવાદ.
http://www.google.com/transliterate/Gujarati
http://translate.google.com/#en|hi|
http://kenpatel.wordpress.com/
thanks !
माँ अब तक सिर पर अपना आँचल रखे, दुलराते, नज़रें उतारते साथ है । कल नहीं होगी, तब क्या होगा? सोचता हूँ, फिर सोचने की क्षमता चुकने लगती है…भर-भर जाता हूँ । रात को कई बार, कई दिन ऐसा ही सोच उठ-उठ जाता हूँ । फिर जाता हूँ माँ के पास, रोज के मुँह पोंछने की तरह आँखें उनके आँचल से पोंछता हूँ- माँ कलेजे से लगाती है, नींद आ जाती है ।
प्रविष्टि का आभार ।
apne to rula hi diya phir bhi bahut achha. jo ehsas diya uske liye thanks.
माँ के बारे में ऐसी भावनापूर्ण कविता
मगर बेहद प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करने की बधाई
संजय भास्कर
आदत….मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.in
माँ , माँ होती है | वो खुदा जिसको हम छू सकते हैं , महसूस कर सकते हैं |
सादर