कहा जा सकता था, लेकिन…

मैंने कई बार सोचा कि इस घटना के बारे में लिखूँ या ना लिखूँ. जब लिख लिया तो इस कश्मकश में पड़ गयी कि इसे ब्लॉग पर पोस्ट करूँ या नहीं. मैं ऐसा इसलिए सोच रही थी कि इसे सार्वजनिक करने के बाद बहुत से रिश्ते प्रश्नों के दायरे में आ सकते हैं और कुछ लोगों के अजीब से सवालों का जवाब भी देना पड़ सकता है. लेकिन फिर ये सोचा कि ऐसी घटनाओं को सामने आना ही चाहिए, जो अक्सर किसी एक की ज़िंदगी पर बहुत बुरा प्रभाव डालने के बावजूद, परिवार की बदनामी और रिश्ते बिगड़ने के डर से दबा दी जाती हैं. मैं इसे ज्यों का त्यों लिख रही हूँ, हालांकि नाम नहीं दे रही हूँ.

बात उन दिनों की है, जब मेरे बाऊ जी उन्नाव जिले के मगरवारा रेलवे स्टेशन पर पोस्टेड थे. हमलोग रोज़ ट्रेन से मगरवारा से उन्नाव पढ़ने के लिए आते-जाते थे. एक दिन सुबह-सुबह हम घर से निकले तो दरवाजे पर गाँव का एक चचेरा भाई खड़ा था. हमलोग गाँव कम जाते थे, इसलिए उसे पहचान नहीं पाये, लेकिन दीदी पहचान गयी. गाँव से किसी के आने पर हम भाई-बहन बहुत खुश होते थे. उसके आने के कुछ दिन बाद ही होली की छुट्टियाँ हो गयीं, तो हमें अपने कज़िन के साथ वक्त बिताने का मौक़ा मिल गया. मेरी और छोटे भाई की उससे खूब जमती थी. हमारा कोई बड़ा भाई नहीं था, इसलिए एक ‘बड़ा भाई’ मिलने की ज़्यादा खुशी थी. हमने सोचा था कि वह हमसे मिलने इतनी दूर आया है, लेकिन बाद में पता चला था कि वह हाईस्कूल का इम्तहान देने के डर से घर से भागकर आया था. अम्मा ने समझाया कि वह छुट्टियों के बाद घर चला जाय, तो वो मान गया.

हालांकि उसकी कुछ बातें मुझे अच्छी नहीं लगती थीं. मैंने उन दिनों सातवीं का इम्तहान दिया था, लेकिन मेरी ड्राइंग अच्छी होने के कारण कालोनी के हाईस्कूल में पढ़ने वाले लड़के अपनी साइंस की फ़ाइल के चित्र मुझसे बनवाते थे. ऐसे ही एक लड़के ने मुझे फ़ाइल दी, तो मेरे उस कज़िन ने उसका एक-एक पन्ना पलटकर चेक करना शुरू कर दिया. मुझे बहुत बुरा लगा. मैंने सोचा कि मेरा दोस्त क्या सोचेगा ? कि इसका ‘भाई’ जासूसी कर रहा है. मैंने घर वापस आकर अम्मा से शिकायत भी की. पर अम्मा ने समझाया कि ‘जाने दो, बड़ा भाई है. उसे तुम्हारी चिन्ता होती होगी.’ इसके अलावा उसने कई बार कालोनी के लड़कों के साथ मेरे बात करने और खेलने के बारे में भी टोका. मुझे इन बातों पर गुस्सा आता था, लेकिन अम्मा की वजह से मैं कुछ नहीं कहती. कुछ दिन बाद वो वापस गाँव लौट गया.

उसी साल गर्मियों की छुट्टी में गाँव में एक चचेरी बहन की शादी पड़ी. अम्मा घर की देखभाल के लिए रुक गयीं और घर के बाकी सदस्य- मैं, छोटा भाई, दीदी और बाऊ चारों लोग गाँव गए. हमलोग लगभग पाँच साल बाद गाँव गए थे, मैं और मेरा भाई किसी और को तो पहचानते नहीं थे, तो उसी कज़िन से बातें करते थे.

पहले दिन तो सब ठीकठाक था, लेकिन दूसरे दिन से कज़िन ने अजीब सी हरकतें शुरू कर दीं. गाँव का घर बहुत बड़ा था, बिजली तब थी नहीं, तो अधिकतर जगहों पर अँधेरा रहता था. वो जब अँधेरे में मेरे पास से गुजरता तो हाथ छूते हुए निकलता. पहले तो मैंने सोचा कि गलती से हाथ लग गया होगा, लेकिन जब कई बार यही हरकत दोहराई तो मेरा दिमाग ठनका. वैसे भी लड़कियों की सिक्स्थ सेन्स इतनी प्रबल होती है कि उन्हें ‘स्पर्श-स्पर्श’ में अंतर पता चला जाता है. मैंने उससे बचना शुरू कर दिया. मैं या फिर बाऊ के पास बाहर बैठी रहती या दीदी और बुआ लोगों के साथ घर के भीतर.

लेकिन उसने परेशान करने की नयी तरकीब निकाली. उसने एक छोटे भतीजे को भेजकर मुझे हाते में बुलवाया. अब जब सबके सामने आकर कोई कह रहा है कि ‘फलाने चाचा’ बुला रहे हैं और मैं न जाती, तो लोगों को शक होता कि बात क्या है? मेरी समझ में कुछ नहीं आया. मैं गयी तो लेकिन एक छड़ी लेकर. मैं दूर खड़ी हो गयी, और धमकी दी कि ‘अगर आपने मुझे हाथ लगाने की कोशिश की तो मैं खींचकर छड़ी मार दूँगी.’ मेरे पीछे-पीछे भतीजी-भांजियों की फौज भी आ गयी थी, इसलिए उसे कुछ कहने का मौका नहीं मिला.

मैं रात में चाचा की छत पर सोती थी दीदी, बुआ, कुछ भतीजे-भतीजियों और बड़े भईया के साथ. उस दिन मुझे बहुत नींद आ रही थी, तो दीदी से पहले ही मैं छत पर चली गयी. सोचा बड़े भईया तो हैं ही. गाँव में शादी-ब्याह में कई दिन तक गवनई चलती है, तो दीदी और बुआ उसी में व्यस्त थीं. मुझे पहली ही झपकी आयी थी कि अचानक लगा कि कोई मेरी चादर खींच रहा है. मेरी नींद बहुत कच्ची है, इसलिए तुरंत उठ गयी. सामने देखा तो वही कज़िन था. मैंने ज़ोर से पूछा “क्या है?” तो वो डर गया और तेजी से नीचे भाग गया. मैंने बगल में देखा कि भतीजे वगैरह तो गहरी नींद में सो रहे थे और भईया नहीं थे. शायद भाभी के पास चले गए थे. मुझे उसके बाद नींद नहीं आयी. मैं उकडूँ बैठी रही, जब तक दीदी और बुआ नहीं आ गयीं.

उस दिन के बाद से मैं बेहद डर गयी. मुझे रात होते ही डर लगने लगता. मैं उस समय सिर्फ बारह साल की थी और एकाकी परिवार में पली-बढ़ी. मुझे समझ में ही नहीं आ रहा था कि ‘भईया ऐसा कर क्यों रहे हैं?’ दीदी मुझे अकेली मिल ही नहीं रही थीं. हर समय उनके साथ या तो बुआ होतीं, या भाभी या कोई बहन. दूसरे दिन मैंने बाऊ से वापस चलने की रट लगा दी. और कुछ तो कह नहीं सकती थी. बस बार-बार यही कह रही थी कि “अम्मा की याद आ रही है” एक-दो बार तो आँसू भी छलछला आये. मुझे सच में अम्मा की बहुत याद आ रही थी. अम्मा सच कहती हैं, ‘जब कोई आदमी ज़्यादा प्यार से बोलने लगे, तो समझो कि कुछ गडबड है. ऐसे लोग लड़कियों को उठा ले जाते हैं और उनसे खूब काम कराते हैं.’ पर ऐसा तो अम्मा ने ‘आदमियों’ के लिए कहा था ‘भाइयों’ के लिए तो नहीं. मेरा मन इससे अधिक कुछ नहीं सोच पा रहा था. मैं उस समय कैसा महसूस कर रही थी, इस समय नहीं बताया जा सकता.

हमारे गाँव के घर का आहाता बहुत बड़ा था. उसमें उस समय कुछ सब्जियाँ उगाई जाती थीं. उस दिन शाम के समय भाभी के कहने पर मैं हाते से कुछ सब्ज़ी तोड़ने गयी थी कि उसने मुझे रोक लिया. मैं बेहद डर गयी कि अभी तक तो इसकी हरकतें रात में शुरू होती थीं. अब दिन में भी? मैं रो पड़ी. मैंने पूछा, “आप मुझे क्यों परेशान कर रहे हैं?” उसने जवाब दिया, “हम तुम्हें पसंद करते हैं. जो कह रहे हैं वो मानो और किसी से कुछ कहना मत, नहीं तो हम तुमको पूरे गाँव में बदनाम कर देंगे.” मुझे “बदनाम” शब्द का मतलब मालूम था. ऐसी लड़कियाँ जो गंदी होती हैं, उन्हें बदनाम कहा जाता है. मैं और डर गयी और वहाँ से तेजी से भाग आयी.

अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था ये सब. मेरे दिमाग में उसके कहे शब्द गूंज रहे थे. लेकिन करती भी तो क्या? संयोग से रात को गाँव के ही एक नातेदार के यहाँ घरभोज में जाने को मिला. दीदी हमेशा बुआ से बातें किया करती थीं. वो बतियाते हुए ही जा रही थीं कि मैंने उन्हें रोका कि कुछ बात कहनी है. दीदी ज्यों रुकीं, मैंने त्यों रोना शुरू कर दिया. रो-रोकर मैंने सारी बात बतायी और ये भी कहा कि ‘वो मुझे बदनाम कर देगा.’ दीदी भी अवाक् रह गयीं. उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि कोई भाई ऐसा कर सकता है. उन्होंने मुझसे कहा, ‘वो उससे और उसकी माँ से बात करेंगी.’

दूसरे दिन दीदी ने मुझसे कहा कि ‘उन्होंने चाची से सारी बात बताई, और कज़िन को भी डाँट पिलाई. लेकिन चाची ने अपने लड़के की गलती नहीं मानी. उन्होंने कहा कि कोई गलतफहमी हुयी होगी.’ चाहे जो भी हुआ हो, उस दिन के बाद से कज़िन ने ऐसी-वैसी कोई हरकत नहीं की. दो दिन के बाद हम वापस घर आ गए. बात आयी-गयी हो गयी. दीदी ने न ये बात अम्मा को बतायी और न बाऊ को. दीदी भी छोटी ही थीं, वो इस बात का निर्णय नहीं ले पाईं कि अम्मा-बाऊ को बताकर बात बढ़ानी चाहिए या नहीं.

लेकिन जब हम किसी सड़ांध को ढककर छिपाना चाहते हैं, तो उसकी दुर्गन्ध फैलती ही है. किसी की एक गलती पर यदि उसे रोक न दिया जाय, या सज़ा न दी जाय, तो वो दूसरी गलती करेगा ही.

इन घटनाओं के चार-पाँच साल बाद बाऊ के रिटायरमेंट के बाद जब हम गाँव शिफ्ट हुए, तो मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मुझे क्या करना चाहिए. उस कज़िन से बात करनी चाहिए या नहीं. दिन में लगभग तीन-चार बार उससे सामना होता, लेकिन मैं बात नहीं करती थी. एक दिन भाभी ने मुझसे कहा कि ‘फलाने’ को खाने के लिए बुला दो. मैंने कहा कि मैं उससे बात नहीं करती. भाभी ने जब कई बार मुझसे कारण पूछा तो मैंने पूरी बात बता दी. इसके बाद उन्होंने जो बात बतायी, तो मैं दंग रह गयी. उन्होंने कहा कि “उसने मेरे साथ भी ऐसी हरकत करने की कोशिश की थी. और तो और एक बार अपनी सगी बहन के साथ भी ज़बरदस्ती करने की कोशिश की. इसके बाद उसकी उसके पिताजी ने जमकर पिटाई की.” ये बात सुनकर मेरे पैरों के तले से तो ज़मीन ही निकल गयी. मैं तो उससे सिर्फ दो-तीन साल छोटी थी, लेकिन उसकी छोटी बहन तो बहुत छोटी थी. मैंने कहा, ‘”भाभी, अगर उसको तभी रोक दिया गया होता, जब उसने मेरे साथ बदतमीजी की थी, तो कम से कम उस छोटी लड़की को और आपको तो ये सब न झेलना पड़ता.”

हाँ, ये सच है कि उसे उसी समय रोक देना चाहिए था. उसे सबके सामने शर्मिंदा करना चाहिए था, ‘घर-खानदान की बदनामी’ के डर से डरे बगैर…लेकिन ऐसा नहीं हुआ. मैं बहुत छोटी थी और दीदी बहुत सीधी. हम साहस ही नहीं कर पाये उसके खिलाफ ‘ज़ोर से’ अपनी बात कहने का. और शायद कहते भी तो दोनों परिवार में झगड़े और मनमुटाव के अतिरिक्त और कुछ न होता.

मुझे ये लगा था कि ये मेरे जीवन की ऐसी घटना है, जिसके बारे में मैं किसी से कभी नहीं कह पाऊँगी. लगता था कि मैं ही ऐसी अभागी हूँ, जिसे ये सब झेलना पड़ा है. लेकिन जब हॉस्टल में और लड़कियों से इस पर खुलकर बातचीत होने लगी, तो पता चला कि लगभग सत्तर प्रतिशत लड़कियाँ बचपन या टीनेज में अपने किसी न किसी नातेदार-रिश्तेदार के द्वारा ‘सेक्सुअल अब्यूज़’ झेल चुकी हैं.

इसका कारण क्या है, इसके लिए लंबे-चौड़े तर्क दिए जा सकते हैं, शोध किये जा सकते हैं, लेकिन एक बड़ा कारण यह भी है कि ऐसी घटनाएँ बाहर नहीं आ पातीं, इसलिए इस तरह की हरकतें करने वालों की हिम्मत बढ़ती जाती है. उन्हें पता होता है कि एक छोटी लड़की ऐसी घटना का जिक्र किसी से नहीं कर पायेगी. इसलिए वो बड़ी बेशर्मी से लड़कियों और छोटे लड़कों के साथ यौन-दुर्व्यवहार करते हैं. ज़रूरत है कि इस पर खुलकर बात हो. कानूनी कार्रवाई के अतिरिक्त ऐसे लोगों को सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा किया जाय. उन्हें समाज से बहिष्कृत किया जाय, तो शायद ऐसी घटनाओं पर कुछ हद तक रोक लग पाये.

71 विचार “कहा जा सकता था, लेकिन…&rdquo पर;

  1. आपने लिखा….
    हमने पढ़ा….
    और लोग भी पढ़ें;
    इसलिए बुधवार 05/06/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
    पर लिंक की जाएगी.
    आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ….
    लिंक में आपका स्वागत है .
    धन्यवाद!

  2. न लम्बे चौड़े तर्कों की जरूरत है न किसी शोध की। सारी बातें बहुत पहले से साफ हैं। मैं यहाँ एक छूट लेना चाह रहा हूँ कि व्यक्तियों को वस्तु बताऊँ। उस का कारण भी है कि मैं नहीं ये समाज उन्हें वस्तुएँ मानता है। एक कामगार पुरुष उस के मालिक के लिए वस्तु है और स्त्रियाँ तो लगभग पूरे समाज के लिए वस्तु हैं।
    वास्तव में हमारे समाज में जो मूल्य हैं वे मानते हैं कि स्त्री एक खराब होने वाली पकी सब्जी के समान है जिसे हम खराब होने से बचाने के लिए फ्रिज में रख देते हैं। यदि सब्जी को फ्रिज में न रखें तो वह गर्मी पाकर प्रदूषित हो कर बासी हो जाती है और फिर इसे केवल फेंका जा सकता है या फिर जानवरों को खाने के लिए डाला जा सकता है। अब सब्जी तो अपने बचाव के लिए खुद कुछ कर नहीं सकती। लेकिन स्त्रियाँ / लड़कियाँ या तो फ्रिज में जा कर बैठ जाएँ। वरना किसी भी बैक्टीरिया के छूते ही वे खराब और बासी हो जाएंगी। फिर उनकी स्थिति जानवरों को परोसने जैसी हो जाएगी। लेकिन पुरुष सब्जी की तरह नहीं है। वह तो रसोई में रखे सिलबट्टे की तरह है जो कुछ भी कर ले या जिस के साथ कोई कुछ भी कर ले वह कभी खराब नहीं होता।
    ये जो मूल्य हैं उसी ने यह सब जारी रखा है।
    कल हम चार लोग साथ थे। इसी विषय पर चर्चा चल पडी थी तो हैरत अंगेज बात सामने आई कि कई गाँव ऐसे हैं जिन की 80 प्रतिशत आबादी में कोई लड़की ऐसी नहीं बचती जो अक्षतयौवना विवाह के मण्डप में पहुँच पाती हो। इस से स्थिति की गंभीरता का अंदाज हो सकता है। यह सब स्त्री और पुरुष के सम्बन्ध में समाज में व्याप्त इन मूल्यो के कारण है। ये मूल्य ही लोगों को इस तरह की दुर्घटनाओं और यौन उत्पीड़न की घटनाओँ को दबाने के लिए बाध्य करते हैं। इस के लिए समाज में लगातार संघर्ष की जरूरत है, गाँव गाँव में वर्किंग ग्रुप्स बना कर संघर्ष चलाने की जरूरत है।
    आप एक बहादुर लड़की हैं। जिस ने इस बात को बहुत दिन तक नहीं छुपाया, अपनों को बताया और आज सार्वजनिक भी किया।

  3. विकृत मानसिक रोगी हर जगह मिल सकते हैं तथा उनकी हरकतों से अबोध के मन में बैठा हुआ डर जीवन भर नहीं निकल पाता। ऐसे मानसिक रोगियों का उपचार पहली हरकत के समय हो जाना चाहिए ताकि अन्य किसी को मानसिक प्रताड़ना का सामना करना न पड़े। … पढ़ कर हैरान हूँ।

  4. Aradhana,

    It is true all families have one or two perverts, they groom the victim by threats and treats like he said, he’ll defame you and treat will be, here have some candy don’t tell our little secret to anyone. Usually it is a malady of middle aged men in the family who are mostly popular with everyone but teenage males are no exception thanks to lack of sex education and 70s-80s bollywood movies that tell you molestation is both love and accepted male behavior of powerful men.
    I am sad that little girl, his sister had to go through that trauma but it was a good slap in the face to his mother who had the nerves to defend him and accuse you.

    Yes, such behaviors have to be named out and challenged but the problem is as a 12year old you had no vocabulary to explain what he did but your heart said it was not right. There was also fear that no one will believe you. It is important we make efforts like Amir Khan’s Sataymev Jayate episode on Child sexual abuse. Teaching kids to say as it is, is important. In a culture where you can’t name your private body parts how are we suppose to tell someone what just happened.

    Thank you for posting this and thank you for your courage.
    Peace,
    Desi Girl

    http://girlsguidetosurvival.wordpress.com/all-about-relationships/recognize-child-sexual-abuse/

  5. सचमुच – एक ऐसा कठोर सच – जिसे कम ही लोग कहने की हिम्मत कर पाते हैं – एक नारी होकर आपने उस सच को बेबाकी से रखा – आपके हिम्मत की दाद देता हूँ आराधना जी
    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    http://www.manoramsuman.blogspot.com

  6. .
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    @ इसका कारण क्या है, इसके लिए लंबे-चौड़े तर्क दिए जा सकते हैं, शोध किये जा सकते हैं, लेकिन एक बड़ा कारण यह भी है कि ऐसी घटनाएँ बाहर नहीं आ पातीं, इसलिए इस तरह की हरकतें करने वालों की हिम्मत बढ़ती जाती है. उन्हें पता होता है कि एक छोटी लड़की ऐसी घटना का जिक्र किसी से नहीं कर पायेगी. इसलिए वो बड़ी बेशर्मी से लड़कियों और छोटे लड़कों के साथ यौन-दुर्व्यवहार करते हैं. ज़रूरत है कि इस पर खुलकर बात हो. कानूनी कार्रवाई के अतिरिक्त ऐसे लोगों को सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा किया जाय. उन्हें समाज से बहिष्कृत किया जाय, तो शायद ऐसी घटनाओं पर कुछ हद तक रोक लग पाये.

    आप एक बहादुर लड़की हैं… विकृत मानसिकता वाले यह दरिंदे हमारे समाज में लोकलाज के चलते ही प्रश्रय पाते हैं… पर आज जब सबको एक आवाज और मंच उपलब्ध है तो आशा है कि लड़कियाँ खुलकर विरोध में आगे आयेंगी और स्थितियाँ सुधरेंगी…

  7. जब हमें यह लगना बन्द हो जाता है कि यह मेरे साथ कैसे हो सकता है, तभी समस्या सुलझनी प्रारम्भ हो पाती है। बहुत लोग लोकलाज के कारण कुछ नहीं बताते हैं और वेगना को पाले रहते हैं। हो गया तो कहना है। स्पष्टवादिता और प्रखर निर्णय इसे उजागर करने का।

  8. आप ने सच लिख कर जरूरी और नेक काम किया है।दबाने छुपाने से बीमारियां बढ़ती हैं। भारत में पारिवारिक यौन हिंसा से शायद ही कोई बची बच पाती है। बच्चे भी नहीं ।प्रतिशत कुछ कम हो सकता है। जरूरत है इन सारी कहानियों को सामने लाने की। सच को उधेड़ने से झूठ का वातावरण बदलता है।

  9. इस तरह की घटनाएं संयुक्त परिवार में आम थीं। पहले यौन प्रताड़ना के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होती थी, आज जैसी जागरूकता नहीं थी कि सीधा पुलिस में रिपोर्ट कर दो, बदनामी के डर से भी लडकियां और घरवाले डरते थे। मुझे लगता है कि ऐसी डर और दहशत की मनोभूमि से हर लड़की गुजरी होगी। आज समाज में जागरूकता है इसलिए ये बातें खुल कर सामने आ रही हैं।

  10. एक कड़वा सच ……. जिसे अकेले में भी स्वीकार करना बेहद मुश्किल होता है ….. आपने तो उजागर करने का दुसाहस कर दिखाया है ….. आपने आज प्रमाणित कर दिया कि लड़कियां , महिलाएं वास्तव में जाग रहीं हैं ……. हमे ही आगे आना होगा अपने सम्मान की रक्षा और दूसरों से आदर प्राप्त करने के लिए ……. शुभकामनायें समस्त स्त्रियों को

  11. यहाँ यह प्रकट किया जा रहा है कि इस तरह की घटनाओं के दबा दिए जाने के कारण इस तरह की छुटपुट घटनाएँ होती रहती हैं। लेकिन यह तो समाज का महारोग है। कितने प्रतिशत परिवार हैं जो इस तरह की एक भी घटना के बाद उसे उजागर करते हैं और अपराधी को सीख देने की तरफ आगे बढ़ते हैं? ऐसे लोग उंगलियों पर गिने जा सकते हैं। कुछ घटनाएँ बाहर आती भी हैं तो इसलिए कि वे दबा कर रखना चाहने वालों के अलावा अन्य लोगों को पता लग जाती हैं और उन्हें दबाना संभव नहीं रह जाता। समाज में लगे इस महारोग की चिकित्सा करनी है तो चेचक जैसी महामारी से निपटने की तरह करनी पड़ेगी।

  12. मुझे ये लगा था कि ये मेरे जीवन की ऐसी घटना है, जिसके बारे में किसी से कभी नहीं कह पाऊँगी. लगता था कि मैं ही ऐसी अभागी हूँ, जिसे ये सब झेलना पड़ा है. लेकिन जब हॉस्टल में और लड़कियों से इस पर खुलकर बातचीत होने लगी, तो पता चला कि हर लगभग सत्तर प्रतिशत लड़कियाँ बचपन या टीनेज में अपने किसी न किसी नातेदार-रिश्तेदार के द्वारा ‘सेक्सुअल अब्यूज़’ झेल चुकी हैं.

    इसका कारण क्या है, इसके लिए लंबे-चौड़े तर्क दिए जा सकते हैं, शोध किये जा सकते हैं, लेकिन एक बड़ा कारण यह भी है कि ऐसी घटनाएँ बाहर नहीं आ पातीं, इसलिए इस तरह की हरकतें करने वालों की हिम्मत बढ़ती जाती है. उन्हें पता होता है कि एक छोटी लड़की ऐसी घटना का जिक्र किसी से नहीं कर पायेगी. इसलिए वो बड़ी बेशर्मी से लड़कियों और छोटे लड़कों के साथ यौन-दुर्व्यवहार करते हैं. ज़रूरत है कि इस पर खुलकर बात हो. कानूनी कार्रवाई के अतिरिक्त ऐसे लोगों को सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा किया जाय. उन्हें समाज से बहिष्कृत किया जाय, तो शायद ऐसी घटनाओं पर कुछ हद तक रोक लग पाये.

    i think, when something were going to be wrong ,preventions were requiered at the same time. its true that
    जब हम किसी सड़ांध को ढककर छिपाना चाहते हैं, तो उसकी दुर्गन्ध फैलती ही है. किसी की एक गलती पर यदि उसे रोक न दिया जाय, या सज़ा न दी जाय, तो वो दूसरी गलती करेगा ही.

  13. Most people comment that India is a sex-starved nation. I guess it is the lack of proper sex-education, as well as the hard fact that males are not taught to respect women as equal human beings. This could be an attribute of the Arabic culture which has percolated into our nation as well. Stories like these need to come up from various voices and I guess that will force the government to realise the need for sex-ed.

  14. कृपया इसे कट्टरवाद की संज्ञा ने दे तो कुछ कहना चाहूँगा ! इस्लाम धर्म में १२ साल की उम्र के बाद सगे भाई बहनों के बिस्तर अलग कर दिए जाते हे! अकेली जवान बहन के कमरे में जाने के पहले सगे भाई को दरवाज़ा खटखटा कर आज्ञा लेकर कमरे में दाखिल होने का हुक्म हे !१२ साल की उम्र के पश्चात “मेहरम” ( जिससे आपका निकाह नहीं हो सकता जैसे पिता,भाई .मामा.) के अतिरिक्त सभी मर्दों से पर्दा ज़रूरी हे ! गैर मर्दों से घुलमिल कर बात करने का तो प्रश्न ही पैदा नहीं होता ! गैर मर्द से बात भी करना हो तो निहायत ही बेरुखी और कड़क आवाज़ में बात करना होती हे !बकौल एक हदीस के ” दो जवान औरत मर्द के एकांत में वो अकेले नहीं होते ,एक तीसरा भी होता हे जिसे शैतान कहते हे !सारांश ये हे की १४०० साल पुराने मजहब में इंसानी फितरत के अनुसार नियम-क़ानून का समावेश किया गया था !

    1. सदियों पहले जो नियम बनाएँ गए थे, वो आज कैसे लागू हो सकते हैं. आज जबकि लड़कियाँ घरों से बाहर निकल रही हैं, तो क्या उन्हें पूरी तरह परदे में ढँककर बाहर निकलने को कहा जाय? क्या इससे उनके साथ हो रही यौन दुर्व्यवहार की घटनाएँ रुक जायेंगी? क्या इस तरह से घर को बाँट सकते हैं कि लड़कियाँ और लड़के आपस में एकदम बात ही न कर पायें? जी नहीं. उनको जितना अलग रखने की कोशिश होगी उतना ही उनके मन में कुंठाएँ जन्म लेंगी. मैं अपने मुँहबोले भाइयों और दोस्तों के साथ बहुत घुली-मिली थी. सभी मुझे बहुत प्यार करते थे. हम आपस में मारपीट, झगड़ा करते थे, एक ही चारपाई पर बैठकर टी.वी. देखते थे. लेकिन इस तरह की हरकत करने की कभी किसी ने कोशिश नहीं की. क्यों? माफ कीजियेगा, मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ कि परदे से या लड़के-लड़कियों को अलग-अलग हिस्सों में रख देने से ऐसी घटनाएँ रुक जायेंगी.
      ये घटनाएँ रुकेंगी लड़कियों को अधिक आत्मविश्वासी और जागरूक बनाने से, लोगों को इस बारे में शिक्षित करने से कि वे इस तरह की घटनाओं को बदनामी के डर से छिपाएँ नहीं, और न ही लड़कियों को इसका दोषी ठहराएँ…इन सबके अलावा लड़कों को ये सिखाने से कि वे औरतों की इज्जत करें, उन्हें इस्तेमाल की चीज़ न समझें.

      1. आराधना आप की इस हिम्मत और हौसले को सलाम करती हूँ,, और ये काम वही लड़की कर सकती है जो अपनी जगह सच्ची और ईमानदार हो ,,मैं आप से सहमत हूँ ,,,विश्वास भी तो कोई चीज़ है क्या लड़कियाँ अपने पिता, चाचा, भाई आदि पर भी विश्वास न करें ?
        शब्बीर साहब ने स्वयं ही लिखा है कि महरम के अतिरिक्त सब से पर्दा होना चाहिये,,ठीक है परंतु जो व्यक्ति अपनी सगी और १२ साल से कम उम्र की बहन के साथ ,,भाभी के साथ ग़लत हरकत करे उसके बारे में उन के विचार जानना चाहूंगी
        समस्या पर्दा , बेपर्दा, छोटे – बड़े कपड़े आदि नहीं हैं बल्कि लड़कियों के साथ लड़कों को भी उन की सीमा बताने की आवश्यकता है ,,,,,,जब तक ,,रिश्तों को मज़ाक़ समझने वाले ये मानसिक रोगी ,,,औरतों को चीज़ समझना नहीं छोड़ेंगे ये सब होता रहेगा

        गैर मर्दों से घुलमिल कर बात करने का तो प्रश्न ही पैदा नहीं होता ! गैर मर्द से बात भी करना हो तो निहायत ही बेरुखी और कड़क आवाज़ में बात करना होती हे !

        मैं बहुत अज्ञानी हूँ आराधना ,,मुझे ऐसी कोई जानकारी नहीं 🙂

      2. Aradhana, aapke saahas bhare lekh se bahut logon ko bal milega….Likhne ke liye Dhanyawaad. Ye aapki nahin, hum sabon ki kahani hai…aur zaruri hai in kahaniyon ko mun ke qaid se azad karne ki…..taki is baat ka bodh ho ki hum akele nahin hain…bahut achha laga. Inhi maslo ko uthane ke liye main ne bhi ek blog shuru kiya hai, http://www.kaalratri.com. Aur Qureshi saab ko aapne aur Ismat ji ne achha jawab diya hai. bas itna kahungi ki, aapka dharm 1400 saal purane niyamon mein qaid hai…baanki dharmo ki bhi yehi dasha hai…dharm ko bachana hai to 1400 saal ke purane niyam kanoon se bachayiye..zarurat mahilaon ko parda karne ki nahin hai, mard parda karen to laazmi hoga…sharm mahilaon ka nahin hai, mard sharm karenge to baat banegi…abused, raped auraton ko jo samaj/dharm bahishkar karta hai, wo prataarit karne walon ka bahishkar kare to baat banegi….jis bhi dharm mein mard aur auraton ke alag niyam ho, wo manya nahin hoga…dharm ke thekedar sabhi jagah mard hain….dharm/mazhab ko bachana hai to auraton ko insaan samajhiye aur dakiyanoosi baaton se bahar aayiye….masjidon mein azaan dene ke liye auraton ko bulayiye, saath mein namaz ke liye bulayiye…tab baat banegi…ye sabhi dharmon ke liye utna hi lazim hai….Islam ke jaankar jinko main jaanti hun, wo Qureshi saab ki baaten sunkar pareshan ho jayenge…:)…

    2. Let us see some of the brilliant examples:

      (1) Beating women:
      Chapter Number 4: Verse Number 34: http://quran.com/4/34
      Men are in charge of women by [right of] what Allah has given one over the other and what they spend [for maintenance] from their wealth. So righteous women are devoutly obedient, guarding in [the husband’s] absence what Allah would have them guard. But those [wives] from whom you fear arrogance – [first] advise them; [then if they persist], forsake them in bed; and [finally], strike them. But if they obey you [once more], seek no means against them. Indeed, Allah is ever Exalted and Grand

      Based on the English translation, one can conclude that Women are allowed to be beaten.

      (2) The case of 72 Virgins: http://wikiislam.net/wiki/72_Virgins
      Based on what is written on the web page, one can conclude the sexist interpretation of what paradise means

      (3) Chapter 24, Verse 31: http://quran.com/24/31
      Translation: 1: [24:31] And tell the believing women to subdue their eyes, and maintain their chastity. They shall not reveal any parts of their bodies, except that which is apparent. They shall cover their chests with their ‘khimar’.
      Translation 2: And tell the believing women to reduce [some] of their vision and guard their private parts and not expose their adornment except that which [necessarily] appears thereof and to wrap [a portion of] their headcovers over their chests and not expose their adornment except to their husbands, their fathers, their husbands’ fathers, their sons, their husbands’ sons, their brothers, their brothers’ sons, their sisters’ sons, their women, that which their right hands possess, or those male attendants having no physical desire, or children who are not yet aware of the private aspects of women. And let them not stamp their feet to make known what they conceal of their adornment. And turn to Allah in repentance, all of you, O believers, that you might succeed.

      A dictum on what a woman should wear.

      (4) The equality of men and women:
      There are conflicting links on the internet regarding this (apologetics perhaps). But here is a list of verses: http://www.thereligionofpeace.com/Quran/010-women-worth-less.htm

  15. एक आम घटना का वर्णन आपने किया मगर यह मालूम है प्रायः सभी को ही ….लोग सावधान रहते हैं …….और ऐसे मौके नहीं देते जिससे दुर्घटनाएं घटें -सेफ्टी फर्स्ट !

    1. अरविन्द जी, ये घटना आम हो सकती है, लेकिन जिसके साथ घटती है, उसके लिए ये कोई मामूली नहीं. आपके कहने से तो लग रहा है कि “यह स्वाभाविक है. इसे रोका नहीं जा सकता. इसलिए खुद सावधान रहो.” चलिए मैं तो बारह साल की थी, लेकिन दो महीने से लेकर पाँच साल की बच्ची कितना बच सकती है अपने चचेरे-ममेरे-फुफेरे भाइयों या चाचा, मामा, फूफा, जीजा आदि से. और कभी-कभी अपने बाप से भी. इंसान, जानवर नहीं है अरविन्द जी, इंसान इंसान है. सृष्टि के आदि में भले ही सगे-सम्बन्धियों में सम्बन्ध हो जाया करते हों, अब नहीं होते… और हाँ, बात संबंध की है भी नहीं, बात एब्यूज़ की है, जो जिसके साथ होती है, ताउम्र परेशान करती रहती है.

      1. क्षमा देवि! मुझे अच्छा नहीं लगा आपका एक आम सी मगर निजी घटना को सार्वजनिक करना ! शायद ही कोई हो जिसके साथ कमोबेस ऐसी घटनायें न घटी हों -मेरे साथ भी तो आपसे भी आधिक आगे की घटनाएं घटी हैं तो क्या करूं? आपका एक काउंटर आलेख लिख डालूँ ?
        हाँ आपने जो लिखा वह बड़े खतरों को भी इन्गिति करता है …..मगर उन्हें तो कोई लिखता नहीं -एक आम भारतीय तो नहीं ही लिखता मगर अंतर्जाल पर आगे के दृष्टांत भी विदेशियों और देशी विदेशियों द्वारा लिखे तमाम हैं …..मगर उन्होंने कुछ ठोस किया समाज में ऐसी घटनाओं को रोकने में योगदान दिया रचनात्मक तरीके से ..आप लोगों के लेखन से प्रायः ऐसा लगता है कि पुरुष समाज एक हद दर्जे का कमीना है ….और उससे बच के रहना चाहिए ….यौनिकता की अभिव्यक्ति विकृतियाँ समेटे हुए हैं मगर वह हमेशा बुरी भी नहीं है -प्रकृति द्वारा जैव जगत को सौपी गयी यह एक अनुपम सौगात भी है -यह दृष्टि कही कहीं ऐसे लेखों से बाधित होती है ! आगे से ध्यान रखियेगा 🙂

      2. सबसे पहली बात, तो ये निजी घटना नहीं है. निजी वह होता है जो दो लोगों के बीच आपसी सहमति से होता है. ऐसे तो आपलोग घरेलू हिंसा को भी निजी ही मान लेंगे.
        दूसरी बात, @.”यौनिकता की अभिव्यक्ति विकृतियाँ समेटे हुए हैं मगर वह हमेशा बुरी भी नहीं है -प्रकृति द्वारा जैव जगत को सौपी गयी यह एक अनुपम सौगात भी है -यह दृष्टि कही कहीं ऐसे लेखों से बाधित होती है !” आपकी इस नकारात्मक बात को ही मैं सकारात्मक रूप में देखती हूँ. यदि इसमें से विकृतियाँ निकाली नहीं गयीं, तो ये ‘बलात्कार’ पर ही खत्म होंगी. और प्रकृति द्वारा दी गयी यह अनुपम सौगात किसी ए लिए दुःस्वप्न मात्र बनकर रह जायेगी.
        तीसरी बात, @”आप लोगों के लेखन से प्रायः ऐसा लगता है कि पुरुष समाज एक हद दर्जे का कमीना है ….और उससे बच के रहना चाहिए.” ये इल्जाम लगाते समय आपको देखना चाहिए कि जो इसे मात्र एक ‘जैविक बात’ न मानकर सामाजिक मानसिकता के कारण घटित घटना मानता है, वह कभी ये नहीं मानेगा कि पूरी पुरुष जाति कमीनी होती है. एक औसत औरत के साथ ऐसी घटनाएँ होने के बावजूद वह प्रेम भी करती है और घर भी बसाती है. यदि वह बहुत अधिक संवेदनशील नहीं है तो या उसके साथ कुछ ‘बहुत बुरा’ नहीं घटित नहीं हुआ है तो.
        मेरा यह मानना है कि इसी प्रकार की घटनाएँ, जिन्हें दबाने-छिपाने की या अनदेखा करने की कोशिश करते हैं, आगे चलकर बलात्कार का रूप ले लेती हैं. इसी प्रसंग में देखिये कि अगर भाभी समय से पहुँच न गयी होतीं, तो एक भाई द्वारा बहन का बलात्कार हो गया होता. और अन्य घटनाओं की तरह ये घटना भी दबा जाती. सब कुछ सामान्य हो जाता, सिवाय उस लड़की की ज़िंदगी के.
        मुझे तो बहुत-बहुत आश्चर्य हो रहा है कि आप इसे ‘निजी’ घटना कह रहे हैं. इससे पहले जब आपने ‘आम बात’ कहा था तो मुझे लगा था कि आप इस ओर इशारा कर रहे हैं कि यह बहुत व्यापक समस्या है. मैं सच में हैरान हूँ कि आपका जैविक दुराग्रह इतना आगे जा सकता है कि आप एक लड़की के सेक्सुअल अब्यूज़ को निजी घटना मान लें.

    2. निजता की परिभाषा में किसी उभय पक्षीय सहमति की अनिवार्यता की अवधारणा पहली बार सुनी -अन्यथा हम अभी तक यही जानते समझते आए हैं कि अकेले में आपके साथ चाहे अनचाहे कुछ हो हवा जाय और उसकी भनक किसी को न लगे वह निजता है -आपने अपने निजी ज़िंदगी के इस संस्मरण को सार्वजनिक किया मगर यह सब लोगों को पता है -मुझे दुःख होगा कि कहीं लोग आपसे इस श्रृखला के अगले संस्मरणों की उम्मीद न लगा बैठें!
      मैं जैवीयता में ऐसी सभी समस्याओं के मूल को देखता हूँ अगर यह आपको मेरा दुराग्रह लगता है तो लगे !

  16. @Shabbir Hussain quraishi,

    Yes, even a five year old should be taught to knock the door before they enter into someoen’s private space, 12yrs is little too old. Do you think your 1400 rules have prevented incest amongst the followers of Islam? Just keep your religion out of this and focus on the issue as a human being.

    In Meerut a muslim father-in-law rapes his daughter-in-law and then the local kazi declares her to be “haram” for her lawfully wedded husband. Both husband and wife refuse to abide by the kazi, so either the kazi didn’t read your 1400yr rules or the father-in-law.

    @ShudhG,

    wao, you are intellect matches that of Mr. Quraishi, so you mean to say before the so called islamic invasion there were no sexual crimes against women in India. Oh, did we forget the story of Cheif God Brahma chasing his daughter Sarsawati with lust or the brother Yama lusting for his sister Yami?

    @Arvind Mishra,

    Safty first in this case is like blaming the victim. Where do you expect a child to find a safe space if not his/her home. For your kind information equal number of young boys are sexually abused by men in the families. It is like rite of passage.

    Peace,
    Desi Girl

    1. Hello Desi Girl,

      Thanks for noticing my comment and replying.

      I do not know from where you read the lewd stories about “Brahma” from because I haven’t found any literature like that. Yes, if one were to point out specific “documented” cases in the Hindu scriptures one could list the following:
      (1) Sita’s agnipareeksha
      (2) Bali’s taking over of Sugreev’s wife
      (3) Draupadi being placed on a bet
      (4) Draupadi’s marriage to 5 people (it is not known if it was according to her wishes)
      (5) Gandhari’s marriage to Dhritarashtra (one can idolise Gandhari for her sacrifice and also could highlight her plight of having no answer to the political demands of the situation – hence Shakuni’s outburst against kuruvansha)

      Arabic traditions do not only refer to Islam as such. They could be a collection of the entire feelings of the Semitic communities.

      However, with respect to the 1400 yrs old religion comment, I have provided some links giving quotes from various places. Apparently these are documented pieces of evidence on the status of women in the Semitic communities. If Dr. Aradhana approves them, it would be great. They would be there for everyone to read.

      Cheers.

  17. सच बताऊँ आराधना !!मेरे देखे तो इंसानों में बहुतेरे तो हैवान ही हैं,(वर्तमान सन्दर्भ इन्सान का अर्थ पुरुष ठहरता है !!)और हैवानों से इंसानों सी उम्मीद की जानी ही बेकार है मगर इसका कारण आदमी के समाज में शुरूआती पारिवारिक शिक्षा-दीक्षा है,जिसमें बिना बताये म्युच्युअलि ही एक पुरुष बालक को स्त्री के मुकाबले अपनी ताकत और हैसियत का पता चल जाता है, सच बताऊँ तो समाज में प्रायः सेक्सुअली मानसिक रूप से विकलांग बहुत कम ही लोग हुआ करते हैं यहाँ तक कि बहुत से मानसिक रूप से कमजोर पुरुष बालक सेक्सुअली ठीक-ठाक पाए जातें हैं,मादा को देखकर उनमें वही सामान्य सिहरन हुआ करती है,मेरे देखे कुल-मिलकर मामला एक मादा को आसान शिकार समझना है,क्योंकि पकडे जाने पर पुरुष का प्रायः पतली गली से निकल जाना तय होता है,ठीक वैसे ही जैसे न्याय की जगह पर किसी बलशाली मुजरिम व्यक्ति का बड़े आराम से स-सम्मानित बरी हो जाना होता है फिर यह भी है कि वैसा कोई भी पुरुष बालक या व्यस्क यदि इस हद तक जाता है,तो इससे यह भी ध्वनित होता कि वह सेक्सुअल गलियारे में ज्यादा विचरता है और यह सच भी है कि अपनी उच्चश्रंखल स्वतंत्रता के “स्वाभाविक” कारणवश पुरुष वर्ग व्यभिचारी साईटों पर आसान पहुँच रखता है और बड़े आराम से उन तमाम जगहों पर विचरण करता है,जो खुद उसी की मां-बहनों और बहु-बेटियों के लिए उसकी नज़र में त्याज्य और घृणित हैं,यहाँ तक कि यह सब पाप भी है !!और तुर्रा यह कि यह पाप है इतना मजेदार कि खुद उसे खुद को रोक पाना असंभव लगता है, इसीलिए भी तमाम कालों में व्यभिचार के केस पुरुष द्वारा किये गए पाए जाते हैं और जब तक इसी तरह की म्युचुवल मानसिक ”कु”-शिक्षा और संस्कार पुरुष वर्ग को दी जाती रहेगी….व्यभिचार का यह दुर्ग अभेद ही बना रहेगा….किसी के बातचीत करने से कुछ होना-जाना नहीं हैं !!बेशक इस तरह की बातचीत के भी मजे लिए जा सकते हैं और यह भी एक किस्म का व्यभिचार ही होगा…..होगा ना आराधना….!!

  18. आराधना जी,
    अपनी बात रखने के लिए अपनी उलझन को जो आपने दरकिनार किया, उसके लिए बधाई भी और शुक्रिया भी।
    आपने उचित ही कहा कि किसी की एक गलती पर यदि उसे रोक न दिया जाय, या सज़ा न दी जाय, तो वो दूसरी गलती करेगा ही. पर बात सिर्फ इतनी ही नहीं है। ख़ासकर जब इस सवाल के साथ हो कि ‘ऐसा क्यों?’ मैं यह तो नहीं कहूंगा कि सब कुछ जानता समझता हूं, हां पर इस तरह की कई घटनाओं को बहुत करीब से जाना-समझा है, इसलिए आपकी इस बात से इत्तफ़ाक रखता हूं कि पुरुषों के लिए यह आम बात हो सकती है, लेकिन जिस स्त्री पर बीतती है उसके लिए कतई नहीं हो सकती। इन बातें को न कहने के पीछे कई वजहें होती हैं। जिसके बारे में एक लेख ‘बीमार मानसिकता और शब्दों से बलात्कार’ ( http://khalishh.blogspot.in/2012/11/blog-post.html ) में मैंने कुछ कहने की कोशिश की थी। यह लेख आपकी घटना की तरह ही एक घटना से उपजे क्रोध का नतीजा है। फ़र्क केवल इतना है कि इसमें जिस घटना का जिक्र है वह उस समय में अक्सर घटित होती है, जब कोई लड़की काॅलेज में कदम रखती है, ख़ासकर कस्बाई या छोटे शहरी इलाकों में।
    आपने खुलकर बात किए जाने, समाज से बहिष्कृत किए जाने की बात की, तो इतना ही कहूंगा कि आपकी इन उम्मीदों की हकीकत भी शायद आपको इस लेख में दिखाई दे।
    बहरहाल, आपने बचपन में न सही, अब अपनी बात कहने की हिम्मत जुटाई, उसके लिए आपको सलाम। उम्मीद है आपके इस कदम से कुछ और महिलाएं भी जागेंगी और वे अपने बच्चों को वक़्त पर आवाज़ उठाना सिखा सकेंगी।

  19. आपका प्रयास सराहनीय है. यह लडको के साथ भी उतना ही होता है, परिवार की महिलाओं के द्वारा. मै जब ५ – ७ साल का था, तो मेरी unmarried मौसी (उस समय १-२ साल की होगी) जो हमारे यहाँ ही रहकर पढ़ती थी , उसने कितनी बार ही मेरी Pant उतार कर मेरा सेक्सुअल organs को सहलाती थॆ. और मुझे अब भी साफ़ याद है की उसने एक दो बार अपने कपडे उतार कर मेरा सेक्सुअल ऑर्गन को मुह में लिया था. और मुझे सख्त डांटा हुआ था की अगर किसी को बताया तो बहुत पिटाई होगी तेरी.
    अब बड़े होने के बाद भी मै कुछ नहीं कह सकता उनके बारे में, नहीं तो पूरा घर तबाह हो जयेगा.

    और यह एक इंसिडेंट नहीं है, मेरे फ्रेंड (male) ने बताया था की जब वो ८-९ क्लास में पढता था, और अगर सोया हुआ है, तो उसकी खुद की माँ उसे उठाने जाती थॆ. अगर उठ गया तो ठीक वरना उसका Pant के ऊपर से उसके लिंग को grope करके खींचते हुए उठती थॆ. उसे यह बहुत shocking और बुरा लगता था, और माँ को मन करता थ. लेकिन उसकी माँ कहती थी – “क्या हुआ तेरी माँ हूँ “।खैर **और कई inciedents तो बताने लायक भी नहीं है**। अब बस अगर इसी scene को gender reversal करके देख लिया जाए, और अगर बाप अपनी बेटी को सोने से उठातरे हुए इसका सौवां हिस्सा भी करेगा तो सेक्सुअल हरास्स्मेंट डिक्लेअर हो गयेग. लेकिन माँ को इतना महान बना दिया गया है की अगर किसी बेटे ने यह बात कह दी होती तो लोग उसके बेटे पर ही हसेङ्गे. लेकिन अगर बेटी विक्टिम हो तो समाज और मीडिया उसके सपोर्ट में आ जयेङ्गे. वो मेरा फ्रेंड आजतक यह बात सिर्फ मुझ से कह पाया , जब मैंने उसे अपने साथ हुआ बात बताया।
    लडको के साथ लेडीज भी उतना ही सेक्सुअल abuse करती है , फर्क यही है बॉय विक्टिम तो बड़ा होने पर जिंदगी में कभी publicly यह बता भी दे, तो उसे कोई सहानुभूति या लीगल सपोर्ट नहीं मिलने वल. और इस incidents से मई आज तक उबार नहीं पाया हूँ . मै अब किसी लड़की पर विश्वास करने में बहुत दिक्कत महसूस करता हॊन. लड़के भी जिंदगी भर के लिए उतने ही traumatized हो जाते है, जितनी की गर्ल victims
    किसी विक्टिम बॉय में हिम्मत नहीं होती की उस trauma को बता कर उससे बड़ा trauma अपने ऊपर ले ले.

    1. मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ. ऐसे लोग तो समाज में हैं ही, जो छोटे लड़के-लड़कियों के साथ सेक्सुअल अब्यूज़ करते हैं. लेकिन आ सोचिये कि लड़कों के द्वारा अपने एब्यूज़ के बारे में खुलकर न बोल पाने का कारण क्या है? इसका कारण भी हमारे समाज की मानसिकता में ही निहित है. हमारे समाज में “मर्दानगी” की अवधारणा इतनी प्रबल है कि अगर कोई लड़का अपने बारे में इस तरह की बात स्वीकार करता है, तो लड़के ही उसकी हँसी उड़ाते हैं और कोई दूसरा लड़का, जिसने ये सब झेला है, सबके सामने अपने साथी का साथ नहीं दे पाता. जबकि लड़कियाँ इस मामले में अपनी साथी पीड़ित लड़कियों का साथ फिर भी दे लेती हैं. मेरे एक करीबी पुरुष मित्र के साथ बचपन में सेक्सुअल अब्यूज़ हुआ था, जो कि उसके मामा ने किया था. हाँ, औरतों द्वारा एब्यूज़ के बारे में बहुत कम सुना है, लेकिन ये घटनाएँ भी होती हैं, भले इनके बारे में सबसे कम बात हो.
      दरअसल, समस्या हमारे समाज की संरचना में ही कहीं निहित है. सेक्सुअल अब्यूज़ की समस्या पूरे विश्व में हर कहीं मौजूद है. फर्क सिर्फ इतना है कि सब जगह इस पर खुलकर बात होती है, इसके विक्टिम को ‘विक्टिमाइज़’ नहीं किया जाता, बल्कि उनके साथ सामान्य व्यवहार करने की कोशिश की जाती है. चाइल्ड सेक्सुअल अब्यूज़ के लिए कड़े कानून भी हैं और दोषियों को शीघ्र दण्ड मिलता है.
      कानून तो चाइल्ड सेक्सुअल अब्यूज़ पर हमारे यहाँ भी है, लेकिन इतनी जागरूकता नहीं है. फिर जब विक्टिम खुद ही अपने ऊपर हुए शोषण को स्वीकार नहीं करेगा, तो कानून क्या करेगा?

      1. और हाँ, एब्यूज़ हो किसी के भी साथ बुरा ही होता है, कम या ज़्यादा नहीं.
        दूसरी बात लड़के एक निश्चित उम्र के बाद इससे बच जाते हैं, जबकि लड़कियाँ सारी उम्र किसी न किसी रूप में झेलती हैं. घर में, बस में. ट्रेन में और वर्किंग प्लेस में.
        तीसरी बात, लड़कियों के साथ जो बलात्कार होता है, उसके बाद वही समाज, जहाँ से बलात्कारी आते हैं, उसे न जीने के लायक समझता है और न ही शादी के लायक. उसके सेक्सुअल असाल्ट को “इज्जत लूटना” कहा जाता है. मान लिया जाता है कि जिस लड़की के साथ ऐसा हुआ है, उसका जीना ही बेकार है.
        इन सारी बातों का दोष हमारी मानसिकता में ही है. हम इसको बदले बगैर इस समस्या से निपट नहीं सकते.

    2. बधाई मित्र आपने सिक्के के दूसरे पहलू को यहाँ रखा ,,,,,अन्यथा यह चर्चा एकांगी और छद्म सच्चरिद्र वादियों की भेंट चढ़ ही गयी थी … ये घटनाएं कमोबेस क्या पुरुष क्या महिला सभी के साथ घटित होती हैं -और शायद ही कोई ऐसा भाग्यशाली हो जो इनसे बचा हो -हाँ कुछ लोग ढिंढोरा पीट देते हैं कुछ लोग चुप्पी मार देते हैं -बीच के मेरे सदृश्य हैं जो बात उठने पर बोलते हैं . 🙂
      कुछ हद तक बचपन के ये अनुभव सामान्य हैं हाँ ये हद न पार करें इसके लिए परिवार में लोगों को सचेष्ट रहना चाहिए और बच्चों और बड़ों को भी यहीं जरुरत है यौन शिक्षा की!

  20. “At the end of the day, guys aren’t the best at opening up. Scientifically we are told the females tend to open up much better and at a far deeper level, a lot quicker than men will,” – Bruce Pilbrow.
    Isliye Male victims kabhi publicly bolna to door, apne me hi घुटते रहेंगे , kabhi yeh show bhi nahi hone denge ki is problem ne unko andar se kitna तोड़ rakha hai.
    male victims and female victims both exist epidemically in this society.

  21. also see this: this 45 year old woman raped two 12 year old boys
    http://femalesexoffenders.com/fso/index.php/the-news/918-48-year-old-newton-woman-will-spend-years-behind-bars-for-raping-two-12-year-old-boys

    abhi do din pehle mumbai ke posh school me do female employees ko arrest kiya gaya tha 6 saal ki bachhi ko sexually molest karne ke liye.
    ===

    कई बात आपने गरीब परिवार की औरतो को bachho को चापाकल पर नहलाते हुए देखा है . 1 0 -1 2 साल के बेटो को नहलाते हुए उनको Pant खोलने कहेंगी पpublicly . जब वो तौलिया पेहेन्ने मांगेगा तो उसे मना करते हुए कहेंगी – “तू लडकी है क्या? “. और लडकियों को ३-4 साल की उम्र से पूरी प्राइवेसी दी जाती है.
    ये इतना शमेफुल होता है, की कई लडको के नहाते हुए वक्त, उनके हम उम्र बच्चे-बच्चिय उस पर मजाक कर रही होंगी वो नंगा १ ०-१ १ साल का लड़का रो रहा होगा और उसकी माँ भी लगे हाथ “हँसते हुए” सब को बोलेगी – जाओ यहाँ से .

    यह इतना आम है कि.

    कोई बोलेगा ये सब तो नार्मल है, हमारे यहाँ औरतों को देवी कर दर्जा दिया गया है. अबे बेवकूफों, औरत की इज्ज़त करने का मतलब यह नहीं है की लड़के की बैज्ज़ती करो – उसकी पब्लिक नुमाइश करो नंगे और औरत लडको के केयर के नाम पर उनक्व सेक्सुअली फायदा उथये. ।
    ये सब बहुत ही inconvenient truth बोल रहा हूँ, लेकिन काफी बड़े उम्र तक के लड़के की बेशर्म बेईज्ज़ती को सामाजिक मान्यता मिली हुई है.
    ====
    हमें अपने बच्चो (चाहे वो लड़का हो या लड़की ) बचाना होगा इन राक्षसों से (चाहे वो पुरुष हो या औरत )

  22. मानसिक विकृत लोगों के इस तरह रोगों को बढ़ावा देने में उसके अपने ही नजदीकी रिश्तेदार होते हैं खासकर माँ….हर लड़की इस तरह की घटनाओं की शिकार होती है…ज़रूरी है कि लड़कियों को ही बोल्ड बनाया जाय अब….
    साधुवाद आराधना आपको इस लेख के लिए….
    सुनीता

  23. एक और परिचित(male) के साथ उनके बचपन में उनके मकान मालिक की teen age बेटियों ने बहुत कुछ किया जिसके कारन baad me उनके बाहर से ‘एक्सट्रीम शांत और अकेलेपन’ स्वाभाव का जन्म हुअ. लेकिन अन्दर की उसकी बेचैनी और दुःख और पीड़ा से थोड़ी निजात उन्होंने तब पाए जब वो यह बात मुझसे अकेले में पहली बार शेयर कर पाये.

    कई दिनों – दिनों तक इसपर उनसे चर्चा होने के बाद , पता चला वो अब अपने ३ साल बेटे के लिए अपनी पत्नी की तरफ से सेक्सुअल molestation की आशंका से चिंतित रहते है , हालांकि उन्हें भी पता है की उनकी यह आशंका निराधार है, लेकिन वो इस चीज से निजात नहीं पा पाए है . और externally दुनिया इस टूटे और अकेलेपन वाले आदमी को बहुत सोशल और सक्सेसफुल पर्सन समझती है.
    पुरुष विक्टिम भी उसी दर्द से गुजरते हुए उस दर्द को छुपाते रहते है. लेकिन male victims है उतने ही .
    ===
    हमें अपने बच्चो (चाहे वो लड़का हो या लड़की ) बचाना होगा इन राक्षसों से (चाहे वो पुरुष हो या औरत )

    1. मैं भी यही मानती हूँ कि छोटा लड़का हो या लड़कियाँ, वो खुद तो भोले और मासूम होते हैं, लेकिन थोड़े बड़े होने पार अगर उनलोगों के खिलाफ खड़े होने का साहस करें, जिन्होंने उनके साथ ऐसा किया, तो और लोग भी डरेंगे और खुद वो व्यक्ति (चाहे औरत हो या आदमी) आगे से ऐसा करने का साहस नहीं करेगा. ये बातें समाज में छिपी नहीं रहनी चाहिए, चाहे जितनी असहज हों.
      और हाँ, छोटे लड़कों का लिंग प्रदर्शन- पितृसत्तात्मक सोच की देन है. लोग सोचते हैं कि लड़कों को शर्म करने की क्या ज़रूरत है? जबकि ना सारे लड़के बेशर्म होते हैं और न ही सारी लड़कियाँ शर्मीली. ये व्यक्ति-व्यक्ति का अपना स्वभाव है. हमारे समाज में जो पितृसत्तात्मक मानसिकता है वो ज़बरदस्ती सारे लड़कों को ‘मर्द’ और सारी लड़कियों को लज्जालु स्त्री बनाना चाहती है.

      1. इतना मानने की जरुरत नहीं है आराधना. ये सेक्सुअली हैरेस्ड बॉय साहब की पहली टिप्पणी ही झूठी सी लगी थी, पर दूसरी में इनका एजेंडा बहुत साफ़ दिख रहा है. पत्नी-पीड़ित संघ टाइप वाला एजेंडा. बेशक लड़कों के साथ भी यौन उत्पीडन होता है पर उसका चरित्र मूल रूप में यह नहीं होता जो यह सरकार बताते दिख रहे हैं.

    2. समर जी
      धन्यवाद ! जो मै कहना चाह रही थी वो आप ने कह दिया और टिपण्णी की भाषा और सोच को देख कर ये अंदाजा भी आसानी से लगाया जा सकता है कि ये है कौन 🙂

  24. असल में घर/परिवार की मर्यादा बनाये/बचाये रखने का पूरा ज़िम्मा महिलाओं के सिर पर होना भी इस तरह की घटनाओं को बाहर नहीं आने देता. कई बार पीड़ित महिला को लगता है कि अगर उसने ज़िक्र किया तो उसकी बदनामी तो होनी ही है, परिवार की भी बदनामी होगी, ये सोच उस महिला के दिमाग़ में घर के बुज़ुर्गों ने ही बिठाई है. अगर इस तरह का कोई मामला घर में खुल भी जाता है, तो उसे मर्यादा के नाम पर वहीं दफ़्न कर दिया जाता है, लिहाजा अपराधी के हौसले बुलन्द रहते हैं. उसे मालूम है, कि उसकी कोई भी गलत हरकत इसी तरह दबा दी जायेगी. छोटी/बड़ी सभी लड़कियों की दिक्कत ये है, कि घर का पुरुष समाज और कई बार घर की बड़ी महिलाएं भी पीड़ित लड़की को ही दोषी बना देती हैं, कि तुमने ही लिफ़्ट दी होगी 😦 आखिर फ़लानी से ऐसी हरकत करने की हिम्मत क्यों न पड़ी?
    ज़रूरत है, ऐसी घटनाओं का तत्काल पर्दाफ़ाश होने, और तत्काल दंडित करने की, भले ही ये दंड घर के लोग दें, कानून तो बड़ी लम्बी प्रक्रिया अपनाता है. इस्मत की बात से सहमत हूं. अब इस मामले में संकोच की जरूरत नहीं है, बल्कि अगर परिवार के अन्दर होने वाले यौन-अपराधों को रोकना है, तो उन्हें तत्काल नाम सहित प्रकाश में लाना ज़रूरी है.
    और हां, ऐसे मामलों में केवल व्यक्ति-विशेष की चर्चा होनी चाहिये, किसी भी धर्म को बीच में लाने की ज़रूरत नहीं है. प्रभा खेतान बीस वर्षों तक अपने ही सगे भाई द्वारा यौन शोषण की शिकार होती रहीं, जरूरी था कि वे तुरन्त इस बात का ज़िक्र करतीं, लेकिन उन्होंने भी तब लिखा, जब इस बात के कोई मायने ही नहीं रह गये.

  25. इस तरह के लेख लिख पाना आज संभव हुआ है तब शायद ऐसा कर पाने की हिम्मत जुटाना बेहद मुश्किल होता. और ऐसा समाज के स्त्रियों कि तरफ़ संकीर्ण रवैये कि वजह से था.आज समाज के नजरिये में थोड़ा बदलाव तो आया है पर इतना ही काफी नही है.इस लेख में जिस व्यक्ति कि चर्चा कि गयी है निस्संदेह वो मानसिक रोगी है.पर आज के माता पिता को ये समझना अनिवार्य है कि यदि उन के अपने घरों में भी कोई ऐसा रोगी है तो उसका इलाज करवाये और ये सुनिश्चित करे की वो एक ऐसे
    इंसान में तबदील ना हो जाए जो आगे चलकर मर्यादाओं और उनके सम्मान का हनन करे.खासकर आज कि माँ इतनी कुशल और सक्षम और संवेदनशील है जो ये सुनिश्चित कर सकती है की उसके घर में विकृत मानसिकता युक्त पुरुष जन्म नही लेना चाहिए.
    इस तरह के व्यक्तियों का जन्म अप्भ्रंशित पारिवारिक मूल्यों और व्यवस्थाओं की देन है.एक और मुख्य कारण है कि इज़्ज़त, आबरू ,बदनामी जैसे लेबल वो भी केवल स्त्रियों के लिए अब चाहे वो पीड़ित ही क्यूँ ना हो.शारीरिक संबंधों का इज़्ज़त मान मर्यादा से जुड़ाव समझ से परे है.एक बात समाज को आत्मसात करनी होगी की किसी भी प्रकार के बलात कृत्य व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन है और उसके आत्मसम्मान का भी.इस तरह के कृत्य में संलिप्त व्यक्ति का सामाजिक बहिष्कार होना अनिवार्य है.ऐसे व्यक्ति का परिवार भी परोक्ष रुप से सम्मिलित होता है उसके द्वारा किए गए अपराध में सही समय पर सही विश्लेषण कर उपयुक्त कदम ना उठाने के लिए. पीड़ित को तिरस्कार और अपमान कि बजाय सामाजिक सुरक्षा और सम्मान देकर हम इस तरह कि व्यवस्थाओं से शायद सबके लिए भयमुक्त सभ्य समाज का निर्माण कर पाये और गिरते नैतिक और पारिवारिक मूल्यों तथा सम्माननीय सम्बंधो की रक्षा भी……

  26. इस तरह के लेख लिख पाना आज संभव हुआ है तब शायद ऐसा कर पाने की हिम्मत जुटाना बेहद मुश्किल होता. और ऐसा समाज के स्त्रियों कि तरफ़ संकीर्ण रवैये कि वजह से था.आज समाज के नजरिये में थोड़ा बदलाव तो आया है पर इतना ही काफी नही है.इस लेख में जिस व्यक्ति कि चर्चा कि गयी है निस्संदेह वो मानसिक रोगी है.पर आज के माता पिता को ये समझना अनिवार्य है कि यदि उन के अपने घरों में भी कोई ऐसा रोगी है तो उसका इलाज करवाये और ये सुनिश्चित करे की वो एक ऐसे
    इंसान में तबदील ना हो जाए जो आगे चलकर मर्यादाओं और उनके सम्मान का हनन करे.खासकर आज कि माँ इतनी कुशल और सक्षम और संवेदनशील है जो ये सुनिश्चित कर सकती है की उसके घर में विकृत मानसिकता युक्त इंसान जन्म नही लेना चाहिए.
    इस तरह के व्यक्तियों का जन्म अप्भ्रंशित पारिवारिक मूल्यों और व्यवस्थाओं की देन है.एक और मुख्य कारण है कि इज़्ज़त, आबरू ,बदनामी जैसे लेबल वो भी केवल स्त्रियों के लिए अब चाहे वो पीड़ित ही क्यूँ ना हो.शारीरिक संबंधों का इज़्ज़त मान मर्यादा से जुड़ाव समझ से परे है.एक बात समाज को आत्मसात करनी होगी की किसी भी प्रकार के बलात कृत्य व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन है और उसके आत्मसम्मान का भी.इस तरह के कृत्य में संलिप्त व्यक्ति का सामाजिक बहिष्कार होना अनिवार्य है.ऐसे व्यक्ति का परिवार भी परोक्ष रुप से सम्मिलित होता है उसके द्वारा किए गए अपराध में सही समय पर सही विश्लेषण कर उपयुक्त कदम ना उठाने के लिए. पीड़ित को तिरस्कार और अपमान कि बजाय सामाजिक सुरक्षा और सम्मान देकर हम इस तरह कि व्यवस्थाओं से शायद सबके लिए भयमुक्त सभ्य समाज का निर्माण कर पाये और गिरते नैतिक और पारिवारिक मूल्यों तथा सम्माननीय सम्बंधो की रक्षा भी……

  27. indian society has a deep rooted problem of “doing wrong things but in hiding ” they feel any thing that is not done in open is ok .
    what you suffered was horrible but to some this was not suffering but just attraction of opposite sex and should be take normally and carefully !!!!
    in this society a man who has had 32 years of married life feels proud to profess love to a 32 year old woman 🙂 and they believe its normal !!!!
    Its good you wrote at least unburdening your self helps in moving ahead

  28. आज लड़कियाँ परिवार में भी सुरक्षित नहीं हैं…एक कटु सत्य.. .लाजवाब . धन्यवाद
    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |

  29. आराधना जी
    जरुरी यही है की आज हर लड़की महिला अपने साथ हुए इस तरह की हरकत को यु ही बेबाकी से लिखे , बताये जैसा की आप ने लिखा है , ताकि ये बाते वास्तव में ” आम बाते ” हो जाये और हर लड़की समझे की उसके साथ गलत हो रहा है और उसे इसका जम कर विरोध करना चाहिए न की किसी की धमकी या शर्म लिहाज में चुप रहा जाये , ये बाते “आम” होनी ही चाहिए और बतानी ही चाहिए किसी पीड़ित की तरह न की मुजरिम की तरह अपने परिवार की तथाकथित इज्जत उतरने वाली की तरह , ये चर्चा भी ” आम” होना चाहिए ताकि हर लड़की पहली बार में ही समझ जाये की स्पर्श में क्या अंतर है और किस स्पर्श को रोक देना चाहिए , ताकि अविवाहित लड़किया , छोटे बच्चे भी पुरुषो की घात लगे नजरो और स्पर्श को समझे , और परिवार में माता पिता को भी ये बाते “आम” बातो की तरह ही बच्चो को बता देनी चाहिए जैसे की सुरक्षा के लिए अन्य बाते अपने बच्चो को बताते है । बिलकुल ये ” आम ” सी बाते सभी को पता होनी ही चाहिए ।

  30. आराधना …ये घटना सबके सामने लिख कर तुमने जो हिम्मत का काम किया है ….कायल हो गई हूँ आपकी …ऐसे और भी बहुत कृत्य हैं जो हमारे आसपास होते रहते हैं और हम उसे नज़र अंदाज़ करते चले जाते हैं ..जिस से बुरा करने वालो की हिम्मत बढ़ती चली जाती हैं ….(hats of u mukti)…..शुभ आशीष के साथ …यूँ ही सत्य लिखती रहो

  31. ऐसी घटनायें समाज में आम हैं, इन्हैं उजागर करते रहने से एक दिन ऐसा भी आयेगा जब उसी समय प्रतिकारात्मक रवैया अपनाया जाने लगेगा और तब इस तरह की घटनाओं पर रोक लग सकेगी ।

  32. मसला शर्म की लोकेशन बदलना का है आराधना. अपने जैसे कुंठित समाजों में जब तक शर्म पीड़िता पर केन्द्रित रहेगी तब तक इससे ज्यादा और कुछ उम्मीद भी नहीं कर सकते. जिस दिन हम शर्म को धकेल कर उत्पीडक तक ले आये उसी दिन सब बदल जाएगा.

  33. मुक्ति जी,सबसे पहले तो इस साहस के लिए आप प्रशंसा की हकदार है जैसा कि बहुत कम लड़कियाँ कर पाती है।लेकिन कुछ बातें कहना चाहूँगा जो आपको बुरी लग सकती है आपको इतने वक्त से पढते हुए आपके बारे में महसूस हुई और अक्सर लड़कियों के व्यवहार में ये बातें शामिल होती है।एक तो ये कि आप अतिभावुक और सहज ही किसी पर विश्वास कर लेने वाली लड़की है और कुछ ज्यादा ही आशावादी।आपको लगता है कि आपके विचार जानकर और आपका अच्छा व्यवहार देख कोई व्यक्ति चाहे बुरा ही हो आपके संपर्क मे आकर वह सुधर जाएगा।सबसे पहले तो ये मानना छोड़ दीजिए ऐसा कुछ नही होता।दूसरा आप मानती है कि व्यक्ति यदि उम्र मे बड़ा है तो उसे खुद की उम्र का लिहाज भी होगा और थोड़ा ज्यादा पढा लिखा है तो चरित्र और मानसिकता का भी अच्छा होगा तभी आप अपनी क्लास के लडको के कमेंट करने पर उन्हे तुरंत डाँट देती थी परंतु उस बुढ्ढे के बारे मे आप ये ही तय नही कर पाई कि उसके लिखे शब्द कितने गलत थे और कितने नही।ये मानना बेवकूफी है कि गलत करने वाले ही गलत होते है जबकि सच ये है कि गलत सोचने वाले भी इतने ही गलत होते है क्योकि ये गलत करने वालो का ही अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन करते है।बाकी आप खुद समझदार है।

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