देसीपन, दोस्ताना व्यवहार बनाम औपचारिक व्यवहार

हम बचपन से यह सुनते आए हैं कि दूसरों के साथ वैसा व्यवहार करो जैसा तुम अपने लिए चाहते हो। हम इस कहावत पर आँख मूँदकर विश्वास भी करते आए हैं और उस पर अमल करने की कोशिश भी। मुझे लगता है कि यह कथन हमेशा और हर किसी के साथ सही नहीं होता। कई बार हम … पढ़ना जारी रखें देसीपन, दोस्ताना व्यवहार बनाम औपचारिक व्यवहार

नौकरशाही

लघु कथा- ‘नौकरशाही’लेखक- एदुआर्दो गालेआनोअनुवादक- अज्ञात सिक्सतो मार्तिनेस ने सेविय्ये में बैरकों में अपनी फौज़ी सेवाएं पूरी कीं. उस बैरक के आंगन के बीच में एक छोटी सी बेंच थी. उस छोटी सी बेंच की बगल में एक फौज़ी जवान खडा रहता था. यह बात कोई नहीं जानता था कि बेंच को पहरेदारी की ज़रूरत … पढ़ना जारी रखें नौकरशाही

होली का त्यौहार और औरतें

इलाहाबाद में मैं हॉस्टल में रहती थी| मुझे बचपन से होली का त्यौहार बहुत पसंद था| हमलोग सारा दिन होली खेलते थे| लेकिन इलाहाबाद आने के बाद होली के लेकर बिलकुल अलग अनुभव हुआ| होली के आसपास के तीन-चार दिन हमें हॉस्टल में एक तरह से कैद रहना पड़ता था। हम कैम्पस तक में नहीं … पढ़ना जारी रखें होली का त्यौहार और औरतें

इलाहाबाद और वेलेंटाइन डे

हमलोग इलाहाबाद विश्वविद्यालय के (W H के नाम से प्रसिद्ध) वीमेंस हॉस्टल में थे, जब हमें "दिल तो पागल है" फ़िल्म के माध्यम से "वेलेंटाइन डे" नामक वैश्विक प्रेमपर्व के विषय में पता चला। उन्हीं दिनों इलाहाबाद में पुलिस वालों ने "मजनू पिंजड़ा" अभियान चलाया हुआ था। यह अभियान शुरू तो हुआ था लड़कियों को … पढ़ना जारी रखें इलाहाबाद और वेलेंटाइन डे

अपने अपने दुःख

मैं और शीतल रोज़ रात में खाने के बाद मुहल्ले के पीछे जुगनू गोली को टहलाने निकलते हैं। वहाँ लगभग रोज़ एक बुजुर्ग सरदार जी टहलते दिखते हैं। कुछ दिनों से हमारा शगल था उनके बारे में अनुमान लगाने का। उनको फोन पर बात करते देख मैं कहती कि परिवार से छिपकर घर से बाहर … पढ़ना जारी रखें अपने अपने दुःख

उसका मन

कुछ दिन पहले उसकी परीक्षाएँ चल रही थीं और वो मुझसे फोन पर आराम से बातें करती थी. एक दिन मैंने पूछा कि तुम्हारे तो इम्तिहान चल रहे हैं न? तो बोली "हाँ मौसी लेकिन मुझे कोई टेंशन नहीं. आई एम कूल" 🙂  होती भी कैसे? हमने कभी उस पर अच्छे मार्क्स लाने का बोझ … पढ़ना जारी रखें उसका मन

सडकों पर जीने वाले

हर शनिवार मोहल्ले में सब्जी बाज़ार लगता है. वहीं सब्जी बेचता है वो. इतना ज़्यादा बोलता है कि लडकियाँ उसको बदतमीज समझकर सब्जी नहीं लेतीं और लड़के मज़ाक उड़ाकर मज़े लेते हैं. मैं उससे सब्जी इसलिए लेती हूँ क्योंकि उनकी क्वालिटी अच्छी होती है. मुझे देखकर दूर से ही बुलाता है. कभी 'बहन' कहता है … पढ़ना जारी रखें सडकों पर जीने वाले

फिर से

कहते हैं हर लिखने वाले के जीवन में एक समय ऐसा ज़रूर आता है, जब उसका लिखने-पढने से जी उचट जाता है. अंग्रेजी में इसे राइटर्स ब्लॉक कहते हैं. मैं खुद को कोई लेखक-वेखक नहीं मानती और न ही अपने जीवन में कभी इसका अनुभव किया था. लेकिन पिछले दो-तीन सालों में मुझे ऐसा ही … पढ़ना जारी रखें फिर से