धूसर

दुनिया को जिस रंग के चश्मे से देखो, उस रंग की दिखती है. अभी धूसर रंग छाया हुआ है. जैसे अभी-अभी आँधी आयी हो और सब जगह धूल पसर गई हो या कहीं आग लगने पर धुँआ फैला हो या सूरज डूब चुका हो और चाँद अभी निकला ना हो.

उम्र का तीसरा दशक होता ही कुछ ऐसा है. एक-एक करके सारे रूमानी सपने चिंदी-चिंदी करके बिखरने लगते हैं और उड़ती हुयी चिन्दियाँ सब कुछ धुँधला कर देती हैं. फिर धीरे-धीरे एक खोल सा उतरने लगता है. परत-दर परत दुनिया की सच्चाइयाँ सामने आने लगती हैं. मधुर सपनों के बीच रहने वाला सुकुमार मन इन सच्चाइयों की गर्मी को सह नहीं पाता. आँखें बंद कर लेता है. लेकिन इसकी जलन से बचकर कहाँ जाय? इसमें एक बार तो झुलसना ही पड़ेगा. हो सकता है कई बार भी…

कितना तो समझाया था मन को, सावधान किया था कि मत ओढ़ सपनों की ये मखमली चादर. इसमें भले ही कितना सुकून हो, पर इसे हटना ही है एक दिन. कितना कहा था कि मत चल इस राह पर. यहाँ दिखने वाले फूल असल में पत्थर हैं. जहाँ आगे बढ़े कदम लहूलुहान हो जायेंगे. पर मन अभागा किसी की सुनता है क्या?

अब उम्र का तीसरा दशक है और एक-एक करके हटते परदे, रिश्तों पर से, लोगों के चेहरों पर से, कुछ समस्याओं से, कुछ दुनियावी बातों से. जो दोस्त कल इतने करीब थे, आज हिसाब-किताब करके रिश्ते बनाते हैं और आपको छाँटकर अलग कर देते हैं क्योंकि आप दुनिया के ‘नॉर्म’ में फिट नहीं बैठते या आपका स्टैण्डर्ड उनके बराबर नहीं. कल तक जो आपको अपने सबसे बड़े शुभचिन्तक लगते थे, आज पता चलता है कि उनकी शुभचिंता आपके लिए कम, उनके अपने लिए ज्यादा थी. और एक समय आता है कि आप सबको शक की नज़र से देखने लगते हैं.

जो सबसे प्यारा था, उसे दुनिया ने छीन लिया. माँ-बाप को भगवान ने छीन लिया. ऐसे में अपना विश्वास और मासूमियत बचाए रखना दिन पर दिन कठिन होता जा रहा है. डर लगता है कि सबको अपने नॉर्म में ढालने की आदी दुनिया कहीं हमें भी ना बदल डाले. और हम भी इस बड़ी सी मशीन का टूल बनकर रह जाएँ.

किसी से कोई शिकायत तो नहीं है. उससे भी नहीं जिसने सपने देखने की आदत डाली, सपनों की उन ऊँचाइयों में तैरना सिखाया, जिसके ऊपर खुला आसमान होता था, प्यार पर विश्वास करना सिखाया, बेवजह की बातों में खुशी ढूँढना सिखाया, दूसरों के लिए जीना और सबका दिल जीतना सिखाया. लेकिन सपनों की वो ऊँची उड़ान जितनी रूमानी थी, उतनी ही खतरनाक भी. उन सपनों को टूटना ही था. हर सपने की नियति होती है टूटना. इंसान बहुत दिनों तक सो जो नहीं सकता. वो जागता है और फिर सामने होती हैं कड़वी सच्चाइयाँ- तोल-मोल के बनने वाले रिश्ते…हिसाब-किताब से जुड़ते सम्बन्ध.

इन सबके बीच सबसे ज्यादा सुकून की बात है – अकेले होना. इसका सबसे बड़ा फायदा है- आप जी भरकर रो सकते हैं, बिना इस बात की चिंता किये कि कोई आपको देख लेगा या रोक लेगा.

23 विचार “धूसर&rdquo पर;

  1. दर-असल जो कुछ भी हम सीखते हैं इसी दुनिया से.जिन धारणाओं या मान्यताओं पर हम कभी दृढ़ होते हैं,किसी के समझाने या बताने पर भी टस से मस नहीं होते अचानक समय हमें बिलकुल उसके उलट पक्ष में खड़ा कर देता है.यह सबके साथ होता है,इतनी सपाट और सरल नहीं होती ज़िन्दगी.तभी तो सब चीज़ों को झेलकर या उनसे पार पाकर हम आगे बढते हैं तो कोयला या कुंदन बनते हैं.

    अवसाद अकेले में भी होता है और किसी के होते हुए भी,यह उस व्यक्ति की सोच पर निर्भर होता है.हम साधारण इंसान हैं इसलिए जल्दी घबरा जाते हैं.जिस दिन असाधारणता धारण कर लेंगे,अवसाद निकट नहीं फटकेगा !

  2. बात सही भी है और नहीं भी। बेशक उम्र का 3सरा दशक ऐसा ही होता है जब आप बचपन की बेफिक्री और जवानी की स्फूर्ति से नाता तोड़ने लगते हैं। दुनियाँ की जमीनी सच्चाइयाँ आपको फिर कभी बेफिक्र नहीं रहने देती। दरअसल व्यक्ति का जीवन एक नदी की भांति होना चाहिए – निरंतर बहता हुआ। नए जल को, नयी धाराओं को अपने में समता हुया सदा जीवंत और ताज़ा ना की एक तालाब की भांति रुका हुआ- सड़ा हुआ। व्यक्ति भी यदि नए विचारों, परिस्थितियों और चुनौतियों को स्वीकार करना बंद कर देगा तो वह भी अवरुद्ध हो जाएगा सड़ जाएगा। 3सरा दशक होता है नयी चुनौतियों को स्वीकार करने के लिए, नए रास्ते बनाने और उन पर आगे बढ्ने के लिए। सपने तो अनगिनत होते हैं जो टूट गए तो फिर बनेंगे पर सपनों के टूटने से यदि विह्वल हो जाएँ तो हम मानव कैसे? बच्चन जी की कविता पढ़ी थी आज भी टूटी फूटी याद है। “जो बीत गयी सो बात गई। अंबर के आनन को देखो, कितने इसके तारे टूटे कितने इसके प्यारे छूटे जो छूट गए फिर नहीं मिले कब टूटे तारों पर अंबर शोक मानता है” खुद 35 का हूँ और अनेक सपने धूल में मिला चुका हूँ पर नए देखने से बाज़ नहीं आया हूँ। अस्तु उम्दा लेखन के लिए साधुवाद। लिखती रहिए।

  3. जिन्दगी का सबसे दुखद पहलु यही हैं कि जैसे सामने आये जीना पड़ता हैं जबकि कई बार तो जीने का भी मन नहीं करता क्योंकि ऐसा कुछ खास सा महसूस नहीं होता कि अब हम किसी उपलब्धि के लिए संसार में रुके .अरे जिन माता पिता ने हमारे साथ में हमारे लिए सपने देखे वो ही साथ नहीं रहे तो क्या बाकि रहा फिर. दिल में एक टीस सी रहती हैं. तीस का दशक बाप रे बाप. मै अभी बत्तीस का हू . इसलिए मैंने तो अभी शादी के लिए भी कोई कदम तक नहीं उठाया क्योंकि जीवन बड़े डर दुःख से भरा लगता हैं. बहुत व्यक्तिगत मुद्दा अपने उठाया . शायद एक या दो प्रतिशत ही बचे हैं हमारे जैसे . अब तो ब्लॉग भी कहा लिखना हो पता हैं . फेसबुक ने कब्ज़ा जमा रखा जिस पर चार पंक्तिया ही लिखी जा सकती हैं. मेरे ब्लॉग पर ऐसी सी रचना मैंने डालनी शुरू कि थी . मन टूट जाता हैं सोचते सोचते कि क्या जिंदगी कोई बहुत जरुरी चीज़ हैं . मतलब ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या हैं . हो सके तो मेरी ये पोस्ट पढना . दो साल पहले लिखी थी. http://saralkumar.blogspot.in/2010/04/blog-post_03.html
    \
    आप बिलकुल वैसा ही लिखती हैं जैसा मै लिखता पढता हू . भगवान आपको हमेशा खुश रखे क्योंकि आप ओन लाइन ही सही एक परिचित व्यक्ति तो हैं जो एकदम दिल दिमाग के चरम भावो वाले पोस्ट लिखते हैं. पता नहीं किसको रोना रोंए अपना कि भाई कि जीवन क्या हैं .

  4. हमारे शहर का रंग भी धूसर हुआ है…पर कभी-कभी धूप भी निकल आती है.

    हमें वो सब कुछ जो कभी अपना-सा लगता था या लगता है वह वाकई सपनों
    जैसा ही है…जब उसकी सच्चाई उजागर होती है तब हम जागरुक तो होते हैं पर बार-बार
    उसे ही पकड़ने की कोशिश भी करते हैं…क्या करे सालों की जो आदत पडी है…

    निर्भ्रांत और निरसन अवस्था में जीना ही जीवन है…पर यह इन शब्दों जितना सरल भी नही.

    और उन भ्रान्तियों के लिए अकेले में रोना भी समझदारी नहीं बल्कि कमज़ोरी है जिससे
    कुछ प्राप्त तो होता नहीं …

    लेखन तुम्हारा उज्ज्वल है… मौलिक भी लगे…
    बढ़िया short and sweet write-up…

  5. सपनों का टूटना पीड़ा देता है, निर्वात में बहकता सा लगने लगता है सारा का सारा अस्तित्व। राह तो फिर भी निकालनी होती है, और भी कठोर, संकल्प से ओतप्रोत…

  6. Since I feel we are in the same boat with shattered dreams, I can safely state that I am, indeed, a blessed soul who failed to learnt the art of deception-the so-called worldly-wise orientations. Don’t you think wise lady that Lord saved us from wasting precious moments on pretenders who moved around us like near and dear ones ? I am at least very happy that I have learnt to walk alone. It’s no mean achievement and I am proud of the fact that I learnt it too early when a great portion of life is still to come. I thank all those who left me in pain. That made me realize I am too good too embrace the dirt around me as gold particles. Yes, I aware of the fact that I am trapped in pool of tears and enveloped in deep pain but I love this state from core of my heart. However, that’s real unlike fake smile on faces of people around.

    So my very old friend come to realize that you are a chosen soul..Learn to live with same pain and frustration, with newer dreams as long as this fragile human body allows you to do so, under the impulse of prarabhdha, before it enters in greater world, wherein lies our true world at par with our being!! Yes, the pain persists but that will not prevent me from singing..Mai zindagi ka saath nibhata chala gaya… Barbadiyeo ka Jashn Manata Chala Gaya… I live all alone with my self-the unchangeable real friend of mine- and now feel relaxed, positive and really happy with some space for good souls always.

    -Arvind K.Pandey
    http://indowaves.wordpress.com/

  7. लिखे पे कमेन्ट बाद में करूँगा ! पहले खटके पे सुझाव दे दूं !

    उम्र का तीसवां दशक माने , तीन सौ साल ! मेरा ख्याल है आपपे तीसरा दशक ही शोभा देगा फिलहाल ! फिर भी तीसवें पे जोर हो तो दशक को बरस कर लीजियेगा !

  8. कभी-कभी किसी सच के सामने आ जाने से सपना टूटने जैसा ही आभास होता है.,और उस सच को शब्दश: स्वीकार कर लेने पर अपने परिपक्व उम्र का. अवसाद रोने से कम हो जाता है. रो लीजिये, जी भर के.

  9. रो लिया करो …
    मन हल्का होगा ..
    सहारा ढूँढने की कोशिशों में ही, पैर छिल जायेंगे …
    हाथ कुछ नहीं आएगा ..
    केवल शुभकामनायें …

  10. अकेले होना. इसका सबसे बड़ा फायदा है- आप जी भरकर रो सकते हैं, बिना इस बात की चिंता किये कि कोई आपको देख लेगा या रोक लेगा…हां तन्हा होने के फ़ायदों की जब बात हो तो फ़िर नि:संदेह पहली प्राथमिकता यही होगी । जिंदगी का यथार्थ खुद जिंदगी सबको समझाती है । आप जिंदगी के साथ चलती चलें ।

  11. दुनिया को जिस रंग के चश्मे से देखो, उस रंग की दिखती है। यही बात सही है।

    …मैं भाग्यशाली हूँ। मैने तो हर दशक में मौज अधिक लिया दुःख कम महसूस किया। ज़ख्म बस ऐसे सहे कि आज लगे कल ठीक हो गये। छठें दशक की शुरूवात हो चुकी और लगता है अभी कुछ देखा ही नहीं। आज वैशाख पूर्णिमा के दिन गंगा जी में तैराकी का आनंद लिया । जेठ शुरू हो गया, गर्मी बढ़ रही है, पहली बारिश की प्रतिक्षा में आम के टिकोरों को हसरत भरी निगाह से रोज देखता हूँ कि फुहार पड़े, मीठे हों, और चखे जांय। कहने का मतलब यह कि चश्में अच्छे वाले पहने जांय। जिसमें सुख ही सुख दिखते हों। गम वाले उतार दिये जांय।
    सुना है रोने से शीशे साफ होते हैं।:)

    एक पंक्ति और बहुत अच्छी लगी….
    इन सबके बीच सबसे ज्यादा सुकून की बात है – अकेले होना।

    जिसने अकेले में सकून ढूँढ लिया उसे और क्या चाहिए ! उसकी तो चाँदी है।..बधाई।

    सुख के अपने-अपने चश्में
    दुःख के अपने-अपने नग्में
    दिल ने जब जब जो जो चाहा
    होठों ने वो बात कही है।

    सही गलत है, गलत सही है।

    ……………………………………

  12. विचारणीय चिंतन! हर नया दशक हमारी उम्र चुराता है लेकिन उसके बदले हमें अधिक अनुभवी बनाता है और दृष्टि को विस्तृत करता है। शुभचिन्तकों की शुभचिंता उनके अपने लिए होने का अर्थ बस इतना ही है कि शुभचिंतक चुनने में स्वाभाविक चूकें होती हैं क्योंकि संसार में सब तरह के लोग हैं। कुल मिलाकर अंत में सबकी बैलंसशीट स्ंतुलित हो ही जाती है।

  13. मेरा ख्याल है कि भरे पूरे संसार वाले भी अक्सर कुछ क्षण अकेलापन तलाशते हैं कि अपने आत्म का बही खाता जांच सकें ! सो अकेलापन मुफीद भी है ! ऐसा कोई नहीं जिसे अपने ऊपर की छाया खोने का दुःख ना देखना हो , जिसे अपने मार्ग दर्शकों की नापतौल का सामना ना करना हो ,ऐसा कोई भी नहीं जिसके सपने ना टूटते हों ! ऐसा कोई भी नहीं जिसे अपनेपन की कलई खुलती ना दिखाई दे !
    ऐसा लगभग हर कोई जो अकेलेपन के अवसाद / दुःख / अपेक्षाओं की टूटन को आँखों के रास्ते फ़िल्टर करता है ! यही जीवन है ! दुनिया है !
    एक बात जो सालती है कि इस उम्र तक के लिए , तयशुद अपेक्षायें छल कर गईं , खुशियाँ हासिल ना हुईं …

    पर अनुभव किसने छीने हैं और ‘आगा’ अभी शेष है !

    अकेलेपन में हमें अपना सबसे बेहतर दोस्त होना चाहिये ! ऐसा दोस्त जो कभी झूठे सपने नहीं दिखायेगा ! कभी छल नहीं करेगा … और हमेशा साथ तो है ही ! खुद पर भरोसा दुनिया को धूसर देखने से बेहतर है !

    अपने आगत की फ़िक्र के साथ किन्हीं ऐसों की मदद करने की कोशिश करें जिनका तीसरा दशक बाद में आएगा पर उनके हालात आप के जैसे दिखते हों /हो सकते हों ! आप देखियेगा बड़ी तसल्ली मिलती है !

    मदद कहूं तो हमेशा रुपये पैसे की नहीं होती ! अपने दो बोल ! अपना तजुर्बा !

    शुभकामनाओं सहित !

  14. कल कानपुर से जबलपुर आते हुये मोबाइल पर यह पोस्ट पढ़ी। अनमना हो गया मन।
    वैसे तो तुम खुद समझदार हो। हम तुमको क्या समझायें! उपेन्द्रजी दो कविताओं के लिंक याद आ रहे हैं:
    माना जीवन में बहुत-बहुत तम है,
    पर उससे ज्यादा तम का मातम है,
    दुख हैं, तो दुख हरने वाले भी हैं,
    चोटें हैं, तो चोटों का मरहम है,

    काली-काली रातों में अक्सर,
    देखे जग ने सपने उजले-उजले।

    http://hindini.com/fursatiya/archives/258
    और
    प्यार एक राजा है जिसका बहुत बड़ा दरबार है
    पीड़ा इसकी पटरानी है, आंसू राजकुमार है।

    http://hindini.com/fursatiya/archives/678

    तमाम सारी मंगलकामनायें।

  15. Rashmi Ravija di,

    पता नहीं…मेरे कमेन्ट क्यूँ नहीं पोस्ट हो रहे..तुम्हारे ब्लॉग पर…:(

    ये धूसर रंग भी छंट जायेंगे..और चमकता आसमान सामने होगा…जो सच्चा होगा…और दिखाएगा..यथार्थ के धरातल पर खड़े सच्चे सपने..
    जिन्हें हकीकत में बदलने की कूव्वत अपने पास होगी…
    मुझे तो लगता है…वो सबसे ज्यादा अमीर है… है..जिसके पास खट्टे -मीठे अनुभवों का ज़खीरा हो..
    साहिल से नज़ारा करने वाले क्या जानें…जिंदगी की लहरों के थपेड़े का स्वाद..

  16. इंसान बहुत दिनों तक सो जो नहीं सकता. वो जागता है और फिर सामने होती हैं कड़वी सच्चाइयाँ- तोल-मोल के बनने वाले रिश्ते…हिसाब-किताब से जुड़ते सम्बन्ध.

    कभी कभी आस पास सोच की धुन्ध में सब धूसर धूसर सा लगता है …. पर बरखा धूल को हटा देगी ….. स्वच्छ आसमान होगा … चमकता सूरज नयी ऊर्जा भरेगा ….. शुभकामनायें

  17. बहुत समय से पढने का समय नहीं मिल पा रहा था… आज पढ़ा तो मन थोडा द्रवित हो गया, कहीं न कहीं आपके ये शब्द सभी को अपनी अपनी याद दिलाएंगे।
    मुस्कुराते रहिये… और जब न हो पाए तो कोशिश करते रहिये!

  18. माफ कीजियेगा , हो सकता है मैं गलत हूँ , लेकिन आपकी इस पोस्ट से निराशा झलक रही है |
    आपने अधिक दुनिया देखी है , आप ज्यादा अच्छे से जानती होंगीं लेकिन फिर भी मैं आपको ज़रा फ्लैशबैक में ले जाकर आनंद फिल का एक डायलोग याद दिलाना चाहता हूँ (पता नहीं क्यूँ 😀 )–
    बाबू मोशाय , जिंदगी लंबी नहीं बड़ी होनी चाहिए |
    🙂
    शुभकामनायें |

    सादर

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