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एक सुबह, एक शाम, एक रात

एक सुबह, बांस की पत्ती के कोने पर अटकी ओस की बूँद कैद कर ली थी आँखों के कैमरे में आज भी कभी-कभी वो बंद पलकों में उतरती है, ... ... एक शाम, पक्षियों के कलरव को सुना था बैठकर छत की मुंडेर पर, जिसकी धुन मन में अब भी जलतरंग सी बजती है, ... … पढ़ना जारी रखें एक सुबह, एक शाम, एक रात